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१३. जिन कहै-गोयम ! सांभल वान, असंख्पात अवगाहन-स्थान। ६३. गोयमा ! असंखेज्जा ओगाहणाठाणा पण्णत्ता, त जहा ।
जहणिया ओगाहणा जघन्य अवगाहन सह नरक मांय, आंगूल असख भाग कहिवाय ।।
'जहन्निय' ति जघन्यांगूलासंख्येयभागमात्रा सर्वनरकेषु ।
(वृ०-प०७१) १४. प्रदेश अधिक अवगाहण जघन्य, दोय प्रदेश अधिक है मन्य।
१४, ६५. पदेसाहिया जहणिया ओगाहणा, दुपदेसाहिया यावत् असंख्यात प्रदेश, जघन्य अवगाहणा थी अधिक कहेस ।। जहणिया ओगाहणा जाव असंखेज्जपएसाहिया जहणिया ६५. तत्प्रायोग्य तेहिज नरकावास, उत्कृष्टी अवगाहन तास । ओगाहणा । तप्पाउग्गुक्कोसिया ओगाहणा। जज नरकावासे जान, इम असंख अवगाहन-स्थान ।।
(श० ११२१६) ६६. ए प्रभु ! रत्नप्रभाई तास, तीस लक्ष है नरकावास। ६६, ६७. इमीसे णं भंते ! रयणपभाए पुढवीए तीसाए
इक-इक नरकावास जान, जघन्य अवगाहन विष वत्तमान ।। निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि जण्णि६७. ते स्यू कोहोव उत्ता होय ? असी भांगा भणवा तसं जोय ।
याए ओगाहणाए वट्टमाणा नेरइया कि कोहोव उत्ता? जाब जघन्य अवगाहन थी प्रसग, संख प्रदेश अधिक असी भंग ।।
असीइभंगा भाणियब्वा जाव संखेज्जपदेसाहिया जहणिया
ओगाहणा। वा०---जघन्य अवगाहना आंगुल नै असंख्यातमें भाग, ते नरक नां विरह काल
वा०-'जहन्नियाए' इत्यादि जघन्यायां तस्यामेव माट। सत्ताई ते जघन्य अवगाहना वाला नेरइया किवार लाध किवारै न लाधै ।
चैकादिसंख्यातान्तप्रदेशाधिकायामवगाहनायां वर्त्तलाधै तो क्रोध रा भाव में वर्त। ते नेरइयो किवार एक पिण पामिय । ते माटै
मानानां नारकाणामल्पत्वात् क्रोधाद्युपयुक्त एकोऽपि अस्सी भांगा। इम इक प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना ना धणी में जाव संख्यात
लभ्यतेऽतोऽशीतिभंगाः।
(वृ०-०७१) प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना नां धणी में पिण अस्सी भांगा जाणवा। १८. जघन्य अवगाहन थकी जगीस, असंख प्रदेश अधिक सत्तावीस। १८. असंखेज्जपदेसाहियाए जहणियाए ओगाहणाए बट्टतेहिज नरकावासै कहीस, उत्कृष्ट अवगाहन सत्तावीस ।।
माणाणं, तप्पाउन्गुक्कोसियाए ओगाहणाए बट्टमाणाणं सत्तावीस भंगा।
(श० ११२२०) वा०-जघन्य स्थिति अनै जघन्य अवगाहना नां धणी नेरइया जघन्य स्थिति र वा०-ननु ये जघन्यस्थितयो जघन्यावगाहनाश्च भवन्ति लेखै तो सत्तावीस भांगा, अन जघन्य अवगाहना रै लेखै अस्सी भांगा, इम विरोध
तेषां जघन्यस्थितिकत्वेन सप्तविंशतिर्भङ्गकाः प्राप्न
वन्ति जघन्यावगाहनत्वेन चाशीतिरिति विरोध: ?, हई। एहनों उत्तर-जघन्य स्थिति नां धणी नेरइया नै पिण जघन्य अवगाहना
अत्रोच्यते, जघन्यस्थितिकानामपि जघन्यावगाहनाकाकालै अस्सी भंगाईज कहिये । उत्पत्ति काल भाविपण करी जघन्य अवगाहना रा
लेऽशीतिरेव, उत्पत्तिकालभावित्वेन जघन्यावगाहनाअल्प हुई ते माट। अनै जे जघन्य स्थिति नां धणी नेरइया नां सत्तावीस भांगा
नामल्पत्वादिति, या च जघन्यस्थितिकानां सप्तविशतिः कह्या ते जघन्य अवगाहणा नै उलंघी छै ते नेरइया ना सत्तावीस भांगा जाणवा। सा जघन्यावगाहनत्वमतिक्रान्तानामिति भावनीयम् ।
(वृ०-५०७१) ए प्रभु ! रत्नप्रभाई तास, तीस लक्ष है नरकावास। १६, १००. इमीसे णं भंते ! रयणणभाए पुढवीए तीसाए इक-इक नरकावासै पीड, नेरइया में छै किता शरीर?
निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइजिन क है-तीन शरीर है सोय,वैक्रिय तेजस कार्मण जोय। याणं कइ सरीरया पण्णत्ता? ए तीन ई शरीर विषै वर्तमान, सत्तावीरा भंगा पहिछान ।।
___गोयमा ! तिण्णि सरीरया पण्णत्ता, तं जहावेउब्बिए, तेयए, कम्मए।
(श०११२२१) इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए जाव वेउब्वियसरीरे बढ़माणा नेरइया कि कोहोव उत्ता? सताबीसं भंगा।
(श० ११२२२) वा०-इहां वैक्रिय शरीर नै विष सत्तावीस भांगा कह्या । तो पिण जिका स्थिति बा---पद्यपि वैक्रियशरीरे सप्तविंशतिर्भङ्गका उक्ताआश्री अन अवगाहना आश्री भांगा रीपरूपणा पूर्वे कही तिका तो तिमहिज कहिवी। स्तथाऽपि या स्थित्याश्रया अवगाहनाश्रया च भंगकारूतेहनों बीजो किहां अवकाश नथी, ते माट। अनै शरीर आश्री जे परूपणा
पणा सा तथैव दृश्या, निरवकाशत्वात्तस्याः, शरीराधअवकाश सहित छै, ते माटै सत्तावीस भांगा। इम अनेरै ठिकाण पिण विचारी
यायाश्च सावकाशत्वात्, एवमन्यत्रापि विमर्शनीयमिति। युक्ति कहिव । तथा विग्रह गति नै विष निकेवल तेजस कार्मण शरीर ईज छ।
ननु विग्रहगतौ केवले ये तैजसकार्मणशरीरे स्यातां तयोते वैक्रिय रहित तेजस कार्मण किवारै लाभ किवा न लाभ, ते माट तेहना अस्सी
श०१, उ०५, ढा०१६ १३५
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