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________________ १६. युक्ता द्रव्यलिङ्गधारिणो गृह्यन्ते, ते ह्यखिलकेवलक्रियाप्रभावत एवोपरिमप्रैवेयकेषूत्पद्यन्त इति। (वृ०-प०५०) २१-२३. चक्रवत्तिप्रभृत्यनेकभूपतिप्रबरपूजासत्कार सन्मानदानान् साधून समवलोक्य तदर्थ प्रव्रज्याक्रियाकलापानुष्ठानं प्रति श्रद्धा जायते, ततश्च ते यथोक्तक्रियाकारिण इति। (वृ०-प० ५०) २५, २६. अविराहिय संजमाणं जहणणं सोहम्मे कप्पे, उक्को सेणं सव्वट्ठसिद्ध विमाणे। २७, २८. विरायिसंजमाणं जहणणं भवणवासीसु, उक्को सेणं सोहम्मे कप्पे। हां रा सुगणांजी! भव्य तथा अभव्य पिछानो रा। बाह्य अनुष्ठानो रा।। हां रा सुगणांजी ! अखिल क्रिया समाचारी रा। द्रव्य-लिंग धारी रा।। रा सुगणांजी ! चक्रवत्ति प्रमुख आनंदै रा। मुनिवर वंदै रा॥ हां रा सुगणांजी ! प्रवर पूजा तस् देखी रा। अधिक विशेखी रा।। हां रा सुगणांजी ! तिण अर्थे उचरंगो रा। ग्रहै द्रव्य-लिंगो रा।। हां रा सुगणांजी! निकेवल क्रिया नै प्रभाव रा। ग्रेवेयक जावै रा॥ हां रा गोयमजी ! आराधक संत अचर्मो रा। जघन्य सुधर्मो रा।। हां रा गोयमजी ! उत्कृष्टो गुण ऋद्धो रा। सर्वार्थसिद्धो रा।। हां रा गोयमजी ! विराधक संत विमासी रा। जघन्य भवनवासी रा ।। हां रा गोयमजी ! उत्कृष्ट सुधर्म सागै रा। पदवी न आगै रा।। हां रा गायमजी ! आराधक श्रावक अभर्मो रा। जघन्य सुधर्मो रा॥ हां रा गोयमजी ! उत्कृष्टो उलसावै रा। अच्यू सुख पावै रा॥ हां रा गोयमजी ! विराधक थावक विमासी रा। जघन्य भवनवासी रा॥ हां रा गोयमजी ! जोतिषी में उत्कृष्टं रा। ए समदृष्टि भ्रष्टं रा ।। हां रा गोयमजी ! असणि अकाम निज्जरथी रा।। भवण जघन्न थी रा।। हां रा गोयमजी ! उत्कृप्टो कहिवायो रा। व्यंतर थायो रा॥ हां रा गोयमजी ! अवशेष सर्व विमासी रा। जघन्य भवनवासी रा॥ हां रा गोयमजी ! उत्कृष्टी स्थिति आगै रा। कहूं छु सागै रा॥ २६,३०. अविराहियसंजमासेजमाणं जहणणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे। ३१,३२. विराहियसंजमासंजमाणं जहाणेणं भवणवासी, उक्कोसेणं जोइसिएसु। ३३, ३४. असण्णीणं जहणेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं वाणमंतरेसु। ३५, ३६. अवसेसा सवे जहणेणं भवण बासीसु उक्कोसेणं वोच्छामि श०१, उ०२, ढा०६९६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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