SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आमुख ज्ञान मीमांसा के संबंध में अनेक प्रश्न उपस्थित होते हैं १. ज्ञान क्या है ? २. ज्ञान की उत्पत्ति कैसे होती है ? ३. ज्ञान के स्रोत कितने हैं ? ४. ज्ञान की सीमा क्या है ? ५. मनुष्य जन्म के साथ ज्ञान लाता है अथवा जन्म के पश्चात् उत्पन्न होता है ? ६. क्या ज्ञान के द्वारा द्रव्य को जाना जा सकता है ? ७. क्या इन्द्रियातीत ज्ञान की वास्तविकता है ? प्रस्तुत प्रकरण में इन प्रश्नों का उत्तर खोजा जा सकता है १. जिससे जाना जाता है वह ज्ञान है ।" २. ज्ञान आत्मा का गुण है। ज्ञानावरण कर्म से वह गुण आवृत रहता है। ज्ञानावरण का जितना विलय होता है उतनी जानने की क्षमता प्रकट होती है। यह ज्ञान की उत्पत्ति है। इसे लब्धि कहा जाता है। किसी द्रव्य अथवा पर्याय को जानते समय ज्ञान का प्रयोग होता है ।" ३. ज्ञान ज्ञेय सापेक्ष है । ज्ञेय के साथ इन्द्रिय का सम्पर्क होने पर ज्ञान होता है । इन्द्रिय के साथ ज्ञेय वस्तु का उचित देश में अवस्थान और सन्निकर्ष के निमित्त होने पर ज्ञान उत्पन्न होता है । अतः ज्ञेय वस्तु के सामीप्य और सन्निकर्ष को ज्ञान का स्रोत माना जा सकता है । यह आभिनिबोधिक है । इसका दूसरा स्रोत है-शास्त्र, ग्रंथ अथवा आप्त पुरुष का उपदेश -यह श्रुत है । ४. ज्ञेय अनन्त हैं । इसलिए ज्ञान भी अनन्त है। आभिनिबोधिक और श्रुतज्ञान की सीमा है। उनके द्वारा मूर्त्त द्रव्य जाना जा सकता है । अमूर्त द्रव्य नहीं जाना जा सकता | मूर्त में भी स्थूल पर्याय को जाना जा सकता है सूक्ष्म पर्याय को नहीं जाना जा सकता । अवधिज्ञान मूर्त द्रव्यों को जानता है, मनः पर्यवज्ञान मनोवर्गणा के पुद्गलों को जानता है, केवलज्ञान की कोई सीमा नहीं है । ५. प्राणी जन्म के साथ ज्ञान लाता है। लब्धि इन्द्रिय जन्म के साथ आती है । द्रव्येन्द्रिय का निर्माण जन्म के साथ होता है । के द्वारा भी उपलब्ध होता है ।' अवधिज्ञान जन्म के साथ भी होता है और जन्म के उत्तरकाल में साधना ६. मतिज्ञान के द्वारा पर्याय का ही ज्ञान होता है द्रव्य का ज्ञान नहीं होता । श्रुतज्ञान के द्वारा श्रुत ग्रंथों के आधार पर द्रव्य का ज्ञान होता है उसका प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता। विशिष्ट अवधिज्ञान के द्वारा केवल मूर्त द्रव्य का विशिष्ट प्रत्यक्षीकरण किया जा सकता है । मनः पर्यवज्ञान मनोवर्गणा के पर्यायों को जान सकता है द्रव्यों को नहीं । केवलज्ञान के द्वारा मूर्त अमूर्त सभी द्रव्यों तथा पर्यायों का ज्ञान होता है । ७. इन्द्रियातीत ज्ञान के विषय में सब दार्शनिक एक मत नहीं है । उसका प्रारम्भिक विकास नाम भेद से स्वीकृत है किन्तु चरम विकास केवलज्ञान अथवा सर्वज्ञता अन्य दर्शनों में मान्य नहीं है। महर्षि पतञ्जलि ने पुरुष में सर्वज्ञ बीज का उल्लेख किया है। प्रस्तुत सूत्र में सर्वज्ञता का व्यापक स्वरूप निरूपित है। * १. नन्दी चूर्ण, पृ. १३ : णज्जइ अणेण इति णाणं । २. वही, पृ. १३ : खयोवसमिय खाइएण वा भावेण जीवादिपदत्था णज्जंति इति णाणं । Jain Education International २. नवता मंदी, सु. ७ ४. पातञ्जलयोगदर्शनम् १२५: तत्र निरतिशयं सर्वज्ञबीजम् । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy