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________________ परिशिष्ट ३ : कथा २१९ को प्रशिक्षण दिया । राजकुमारों ने कलाचार्य को प्रचुर धन दिया। राजा धन का लोभी था इसलिए वह बहुत कुपित हुआ । उसने कलाचार्य को मरवाने की योजना बनाई। राजपुत्रों को यह बात ज्ञात हो गई। उन्होंने सोचा - विद्यादाता होने से कलाचार्य भी हमारे परमार्थ पिता हैं । अतः इनको विपत्ति से बचाना चाहिए। कुछ समय के बाद जब कलाचार्य भोजन करने के लिये आये, स्नान करके धोती मांगने लगे। तब राजकुमारों ने सूखी धोती को भी कहा- यह गीली है, इसलिए दी नहीं जा सकती । द्वार के सन्मुख तृण रखकर बोले- यह तृण दीर्घ है। स्नान के अन्त में क्रौंचपक्षी को मंगल निमित्त आरती की भांति प्रदक्षिणा करके उतारा जाता था। उस समय कुमारों ने उसे बायीं ओर से नीचे उतारा। कलाचार्य इन संकेतों को समझ गये । राजा मुझे मरवाना चाहता है और कुमार मेरी रक्षा करना चाहते हैं । गीली धोती संकेत है कि पिता आपके प्रति विरक्त हो गया । दीर्घ तृण का संकेत है रास्ता लम्बा है आप जल्दी चलें । क्रौंच को आरती की भांति प्रदक्षिणा पूर्वक उतारा जाता है। इस समय बाईं ओर से एक झटके में उतार दिया। यह इस बात का संकेत है कि आपका संहार होने वाला है । वह संकेत को समझकर चला गया। १३. नीवोदक दृष्टान्त (नेवे का पानी ) । वह जल त्वचा में विधवाले सर्प से संसृष्ट था । अतः उसको किसी वणिक स्त्री का पति विदेश गया हुआ था । एक दिन वणिक स्त्री ने दासी से किसी पुरुष को लाने के लिए कहा । दासी उसे लेकर आ गई। फिर नख कटवाए और स्नान करवाया। रात्रि में दोनों दूसरी मंजिल पर गये वर्षा शुरू हो गई। वह आगन्तुक व्यक्ति प्यास से व्याकुल हुआ। उसने नीव्रोदक' पी लिया पीने से वह पुरुष मर गया। उस वणिक स्त्री ने रात्रि के पिछले भाग में उसे शून्यदेवकुल में ले जाकर छोड़ दिया । प्रातःकाल दण्डपाशिक (पुलिस) ने उसे देखा, उसका विमर्श किया। इसका नख आदि का संस्कार अभी-अभी किया हुआ है। नापित वर्ग को पूछा गया--नखादि का कर्म किसके द्वारा किया गया है ? एक नापित ने कहा - अमुक नाम वाली वणिक स्त्री की दासी के कहने से मैंने किया है। फिर दासी से पूछा गया - वह इन्कार हो गई। पुलिस द्वारा पीटने पर उसने यथार्थ बतला दिया। यह दण्डपाशिकों की वैनयिकी बुद्धि थी । १४. बैल, अश्व और वृक्ष दृष्टान्त एक हतभाग्य पुरुष जो कुछ भी करता, वह उसकी विपत्ति के लिए होता । उसने एक बार अपने मित्र से बैल मांगकर हल चलाया। एक दिन उसने विकाल बेला में उन बैलों को लाकर उसके बाड़े में छोड़ दिया। उस समय उसका मित्र भोजन कर रहा था इसलिए वह उसके पास नहीं गया। मित्र ने बैलों को देख लिया है ऐसा सोचकर वह अपने घर चला गया। वे दोनों बैल बाड़े से निकलकर कहीं अन्यत्र चले गए। चोरों ने उनका अपहरण कर लिया। बैलों के स्वामी ने अपने उस हतभाग्य मित्र से अपने बैल मांगे । पर वह दे नहीं सका। मित्र उसे राजकुल ले गया । जब वह मार्ग में जा रहा था, सामने से कोई अश्वारोही आया। घोड़े ने उसे गिरा दिया और भागने लगा । अश्वारोही बोला - इस घोड़े को एक डण्डा लगाओ । हतभाग्य ने उसके मर्मस्थल पर चोट कर दी फलतः वह मर गया। अब अश्वारोही ने भी उस हतभाग्य को पकड़ लिया। जब वे नगर में पहुंचे, तब न्यायालय का कार्य सम्पन्न हो चुका था ऐसा सोचकर नगर के बहिर्भाग में ही ठहर गये। वहां पर बहुत से नट सोए हुए थे । हतभाग्य ने सोचा इस आपत्ति रूपी समुद्र से मेरा उद्धार नहीं होगा । वृक्ष से गले में फांसी लगाकर मर जाऊं। उसने वस्त्र से फांसी लगाई और वृक्ष से लटकने लगा। वस्त्र बहुत जीर्ण था। वह उसके भार को न सह सका । वस्त्र फट गया । हतभाग्य नीचे सोए हुए नटों के सरदार के ऊपर गिर गया। नट सरदार का गला उससे दब गया और वह मर गया । अब नटों ने भी उसे बंदी बना लिया । १. इस कथा का अनेक स्थलों पर संकलन है किन्तु संकेतों की स्पष्ट व्याख्या आवश्यकनियुक्ति दीपिका में है। २. (क) आवश्यकचूर्ण, पृ. ५५५ (ख) आवश्यक निति हारिमडीयावृत्ति, पृ. २०४ (ग) आवश्यक निर्मुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२५ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६३ (च) नन्दी हारिनीया वृत्ति टिप्पणकम् पृ. १३८, १३९ (छ) आवश्यक निर्युक्ति दीपिका, प. १८१ Jain Education International ३. नीव्र: - [क] केलू की छत का किनारा । [ख] छप्पर या छाजन का छोर जहां से वर्षा का पानी जमीन पर गिरता है। ४. (क) आवश्यक चूर्ण, पृ. ५५५, ५५६ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिमडीया वृत्ति, पृ. २०४ (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२५,५२६ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति प. १६३ 1 (च) नन्दी हारिया वृत्ति टिप्पणकम् पू. १३९ (छ) आवश्यक निर्युक्ति दीपिका, प. १८१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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