SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट ३ : कथा २०५ परीक्षा ले सकते हैं । परीक्षा का उपाय बताते हुए उसने कहा-आप रानी से कहिए कि मैं दूसरा विवाह करना चाहता है और नई रानी को पटरानी बनाने की सोच रहा हूं। फिर देखिए क्या होता है ? राजा ने ऐसा ही किया। रानी बोली-नाथ ! आप चाहें तो दूसरा विवाह कर सकते हैं, पर राज्य का उत्तराधिकारी परम्परा के अनुसार मेरा पुत्र होगा। यह सुनकर राजा को हंसी आ गई। रानी ने कारण पूछा। राजा ने टालना चाहा, पर रानी के अति आग्रह पर सही बात बतानी पड़ी। रानी ने कुपित होकर भांड को निर्वासित होने का आदेश दे दिया। रानी का आदेश सुनकर भांड बहुत घबराया। आखिर उसे एक उपाय सूझा । वह जूतों की एक गठरी बांधकर रानी के महल के सामने से गुजरा । सिर पर गठरी देख रानी ने पूछा-यह क्या ले जा रहे हो? भांड ने उत्तर दिया-यह जूतों की गठरी है। इन्हें पहनकर मैं जहां तक जा सकूँगा, आपका यश फैलाता रहूंगा। रानी भांड का अभिप्राय समझ गई । बदनामी के भय से उसने निर्वासन का आदेश वापिस ले लिया। ११. लाख दृष्टांत एक बार किसी बालक के नाक में लाख से बनी हुई एक गोली फस गई। उसे निकालने का बहुत प्रयास किया, पर वह नहीं निकली । आखिर उसका पिता एक सुनार के पास ले गया। सुनार ने लोहे की शलाका गर्म कर उसके अग्रभाग को सावधानीपूर्वक बच्चे की नाक में डाला । शलाका के ताप से गोली पिघल कर बाहर आ गई। १२. स्तम्भ दृष्टांत' किसी राजा ने तालाब में एक खंभा गडवाया और घोषणा करवाई कि जो व्यक्ति किनारे पर बैठा-बैठा इसे बांध देगा उसे पुरस्कृत किया जायेगा। यह घोषणा सुनकर एक व्यक्ति ने तालाब के किनारे एक लोहे का खंभा गाड़ा और उसमें रस्सी बांध दी। फिर वह उस रस्सी को लेकर तालाब के किनारे चारों ओर घूमने लगा। ऐसा करने से स्तम्भ रस्सी के बीच में आ गया। फिर उससे अपना लोहे का खंभा उखाड़कर उस रस्सी को खींच लिया। इस प्रकार खंभा रस्सी से बंध गया । राजा ने उसे पुरस्कृत कर अपना प्रधानमन्त्री बना लिया। १३. क्षुल्लक दृष्टांत एक परिव्राजिका थी। उसने राजा के समक्ष यह प्रतिज्ञा की कि मैं कुशलकर्मा हूं। कोई व्यक्ति कुछ भी करे वह सब मैं कर सकती हूं। राजा ने इस प्रतिज्ञा की घोषणा कर दी। क्षुल्लक ने उसे सुना और उसने कहा-इस घोषणा का मैं प्रतिवाद करता हूँ । मैं करूं, वैसा परिव्राजिका नहीं कर सकती । राज्यसभा में सब उपस्थित हो गए । राजा का संकेत पाकर क्षुल्लक खड़ा हुआ। उसने मूंछ और दाढ़ी के केशों का लुञ्चन किया और परिवाजिका से कहा-तुम भी ऐसा करो । परिव्राजिका पराजित हो गई। उपर्युक्त कहानी नन्दी मलयगिरीया वृत्ति का परिवर्तित रूप है। १४. मार्ग दृष्टांत' पति-पत्नी किसी यात्रा पर जा रहे थे। मार्ग में पत्नी शौच निवृत्ति के लिए रथ से नीचे उतरी । वहां एक विद्याधरी पुरुष के रूप पर आसक्त हो गई। उसने उसकी पत्नी का रूप बनाया और रथ में आकर बैठ गई। स्त्री वहां पहुंची । तब तक रथ चल पड़ा । स्त्री चिल्लाने लगी तो विद्याधरी ने कहा-लगता है कोई व्यन्तरी मेरा रूप बनाकर हमें धोखा देना चाहती है, अतः आप रथ १. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५४८ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८० (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२० (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति , प. १५३ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३५ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १७९ २. (क) आवश्यक चूणि पृ. ५४८ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८० (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२० (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५३,१५४ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३५ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १७९ ३. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५४९ (ख) आवश्क नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८० (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२१ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५४ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम् पृ. १३५ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १७९ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy