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________________ परिशिष्ट : १ अणुण्णानंदी १६७ अणुजाणति, तं जहा-तीतं वा पडुप्पण्णं वा अणा- है, जैसे—अतीत, प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) अथवा अनागत, अवस्थान के गतं वा वसंतं हेमंतं पाउसं वा अवत्थाणहेउं । सेत्तं लिए वसन्त, हेमन्त अथवा प्रावृट् । वह काल अनुज्ञा है। कालाणुण्णा ॥ २५. से कि तं भावाणुण्णा? भावाणुण्णा तिविहा २५. वह भावअनुज्ञा क्या है ? भावअनुज्ञा के तीन प्रकार प्राप्त पण्णत्ता, तं जहा लोइया कुप्पावयणिया लोउ- हैं, जैसे-लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तरिक । त्तरिया। २६. से कि तं लोइया भावाणुण्णा ? लोइया भावाणुण्णा २६. वह लौकिक भावअनुज्ञा क्या है ? लौकिक भावअनुज्ञा--- -से जहाणामए राया इ वा जुवराया इ वा जाव जैसे कोई राजा अथवा युवराज......""यावत् तुष्ट होने पर तुटठे समाणे कस्सइ कोहाइभावं अणुजाणिज्जा। किसी को क्रोध आदि भाव की अनुज्ञा दे। वह लौकिक भावअनुज्ञा सेत्तं लोइया भावाणुण्णा। २७. से कि तं कुप्पावणिया भावाणुण्णा? कुप्पावय- २७. वह कुप्रावचनिक भावअनुज्ञा क्या है ? कुप्रावनिक भावणिया भावाणुण्णा से जहाणामए केइ आयरिए इ अनुज्ञा - जैसे कोई आचार्य अथवा........"यावत् किसी को क्रोध वा जाव कस्सइ कोहाइभावं अणुजाणिज्जा। सेत्तं आदि भाव की अनुज्ञा दे । वह कुप्रावचनिक भावअनुज्ञा है । कुप्पावयणिया भावाणुण्णा ॥ २८. से कि तं लोउत्तरिया भावाणुण्णा ? लोउत्तरिया २८. वह लोकोत्तरिक भावअनुज्ञा क्या है ? लोकोत्तरिक भाव भावाणुण्णा से जहाणामए आयरिए इ वा जाव अनुज्ञा- जैसे कोई आचार्य अथवा. ....... " यावत् किसी कारण से कम्मि कारणे तुझे समाणे कालोचियनाणाइगुण- तुष्ट होने पर कालोचित ज्ञान आदि गुणों से योग्य, विनीत, क्षमा जोगिणो विणीयस्स खमाइपहाणस्स सुसीलस्स आदि को प्रधानता देने वाले, सुशील शिष्य को त्रिविध और त्रिकरण सिस्सस्स तिविहेणं तिगरणविसुद्धेणं भावेणं आयारं विशुद्ध भाव से आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, वा सूयगडं वा ठाणं वा समवायं वा वियाहपत्ति ज्ञातधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नवा नायाधम्मकहं वा उवासगदसाओ वा अंतगड- व्याकरण, विपाकश्रुत अथवा दृष्टिवाद को सर्वद्रव्य गुण और पर्यायों दसाओ वा अणुत्तरोववाइयदसाओ वा पण्हावागरणं से अथवा सारे अनुयोग की अनुज्ञा दे। वह लोकोत्तरिक भावअनुज्ञा वा विवागसुयं वा दिट्टिवायं वा सव्वदव्व-गुण- है । वह भावअनुज्ञा है । पज्जवेहि सव्वाणुओगं वा अणुजाणिज्जा । सेत्तं लोउत्तरिया भावाणुण्णा । सेत्तं भावाणुण्णा। गाहा गाथाकिमणुण्ण ? कस्स गुण्णा ? केवतिकालं पवत्तिया १. अनुज्ञा क्या है ? अनुज्ञा किसके लिए है ? अनुज्ञा कितने गुण्णा ?। काल तक प्रवर्तित है ? आदिकर भगवान् ऋषभ ने ऋषभसेन के लिए आदिकर पुरिमताले, पवत्तिया उसभसेणस्स ॥१॥ पुरिमताल में अनुज्ञा का प्रवर्तन किया। अणण्णा उण्णमणी णमणी णामणी ठवणा पभवो २,३. अनुज्ञा, उन्नमणी, नमनी, नामनी, स्थापना, प्रभव, प्रभावन, पभावण पयारो। प्रचार, तदुभय, हित, मर्यादा, ज्ञात, मार्ग, कल्प, संग्रह, संवर, निर्जरा, तदुभय हिय मज्जाया, णाओ मग्गो य कप्पो य स्थितिकरण, जीववृद्धिपद तथा पदप्रवर-ये अनुज्ञा के बीस नाम हैं । ॥२॥ संगह संवर णिज्जर ठिइकरणं चेव जीवबुढिपयं । पदपवरं चेव तहा, बीसमणुण्णाए णामाई ॥३॥ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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