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नंदी
पद परिमाण
अंग १. आचार २. सूत्रकृत ३. स्थान ४. समवाय ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति ६. ज्ञातधर्मकथा ७. उपासकदशा ८. अन्तकृतदशा ९. अनुत्तरोपपातिकदशा १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकश्रुत
१८००० ३६००० ४२००० १६४००० २२८००० ५५६००० ११७०००० २३२८००० ९२४४०००
१८४०००००
सूत्र ९२ ५. (सूत्र ६२)
'दिट्टिवाय' के संस्कृत रूप दो किए गए हैं-१. दृष्टिवाद २. दृष्टिपात । प्रस्तुत अङ्ग में विभिन्न दार्शनिकों की दृष्टियों का निरूपण है इसलिए इसकी संज्ञा दृष्टिवाद है। इसका दूसरा अर्थ है कि इसमें सब नय दृष्टियों का समपात है इसलिए इसका नाम दृष्टिपात है।
स्थानाङ्ग में दृष्टिवाद के दस नाम बतलाए गए हैं.--१. दृष्टिवाद २. हेतुवाद ३. भूतवाद ४. तत्त्ववाद (तथ्यवाद) ५. सम्यक्वाद ६. धर्मवाद ७. भाषाविचय ८. पूर्वगत ९. अनुयोगगत १०. सर्वप्राणभूतजीवसत्त्वसुखावह ।
दृष्टिवाद के पांच प्रकार अथवा पांच अर्थाधिकार बतलाए गए हैं। उनका विवरण स्वयं सुत्रकार ने किया है। दिगम्बर साहित्य में क्रम और नाम का भेद मिलता है। नन्दी
तत्त्वार्थवात्तिक', कषायपाहु', षट्खण्डागम १. परिकर्म
१. परिकर्म २. सूत्र
२. सूत्र ३ पूर्वगत
३. प्रथमानुयोग ४. अनुयोग
४. पूर्वगत ५. चूलिका
५. चूलिका
सूत्र ९३-१०१ ६. (सूत्र ६३-१०१)
परिकर्म का अर्थ है योग्यता पैदा करना । जैसे गणित के सोलह परिकर्म होते हैं उनके सूत्र और अर्थ का ग्रहण करने वाला शेष गणित के अध्ययन के योग्य बन जाता है। इसी प्रकार परिकर्म के सूत्र और अर्थ को ग्रहण करने वाले में सूत्र, पूर्वगत आदि के अध्ययन करने की योग्यता आ जाती है।
१. कषायपाहुड़, पृ. ९३,९४ २. ठाणं, १०॥९२ ३. तत्त्वार्थवार्तिक, ११२०, पृ. ७४ ४. कषायपाहुड़, पृ. १३२ ५. षट्खण्डागम, पुस्तक १, पृ. ११०
६. (क) नन्दी चूणि, पृ. ७२ : तत्थ परिकम्मे ति जोग्गकरणं,
जहा गणितस्स सोलस परिकम्मा, तग्गहितसुत्तत्थो
सेसगणितस्स जोग्गो भवति । (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ.८६ (ग) ठाणं, टिप्पण न. ३९, पृ. ९९२ से ९९४ (घ) समवाओ, पृ. ३८९ से ३९१
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