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पांचवां प्रकरण : द्वादशांग विवरण : सूत्र ८७,८८
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संख्येय हजार पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्यव हैं। उसमें परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया
संखेज्जाइं पयसहस्साइ पयग्गेणं, कालाः, संख्येयानि पदसहस्राणि पदासंखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, ग्रेण, संख्ययानि अक्षराणि, अनन्ताः अणंता पज्जवा, परिता तसा, गमाः, अनन्ताः पर्यवाः, परीताः त्रसाः, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध- अनन्ताः स्थावराः, शाश्वत-कृतनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा निबद्ध-निकाचिताः जिनप्रज्ञप्ता: आघविज्जति पण्णविज्जंति परू- भावा: आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते विज्जति सिज्जति निदंसिज्जति दय॑न्ते निदय॑न्ते उपदर्श्यन्ते । उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं
स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परू- विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणा वणा आघविज्जइ। सेत्तं उवासग- आख्यायते । ताः एताः उपासकदशाः। दसाओ।
इस प्रकार उपासक का अध्येता आत्माउपासक में परिणत हो जाता है। वह इस प्रकार ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार उपासक में चरण-करण की प्ररूपणा का आख्यान किया गया है । वह उपासकदशा है।
८८. वह अन्तकृतदशा क्या है ?
अन्तकृतदशा में अन्तकृत मनुष्यों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, ऐहलौकिकपारलौकिक ऋद्धिविशेष, भोग परित्याग, प्रव्रज्या, पर्याय, श्रुतपरिग्रह, तपउपधान, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, प्रायोपगमन और अन्तक्रिया आदि का आख्यान किया गया है।
८८. से कि तं अंतगडदसाओ? अंत- अथ काः ताः अन्तकृतदशाः ? गडदसासु णं अंतगडाणं नगराई, अन्तकृतदशासु अन्तकृताना नगराणि, उज्जाणाई, चेइयाइं, वणसंडाई, उद्यानानि, चैत्यानि, वनषण्डानि, समोसरणाई, रायाणो, अम्मा- समवसरणानि, राजानः, मातापितरः, पियरो, धम्मायरिया, धम्म- धर्माचार्याः, धर्मकथाः, ऐहलौकिककहाओ, इहलोइय-परलोइया पारलौकिकाः ऋद्धिविशेषाः, भोगइड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, परित्यागाः, प्रव्रज्याः, पर्यायाः, श्रुतपव्वज्जाओ, परिआया, सुय- परिग्रहाः, तपउपधानानि, संलेखनाः, परिग्गहा, तवोवहाणाई संलेह- भक्तप्रत्याख्यानानि, प्रायोपगमनानि, णाओ, भतपच्चक्खाणाई, पाओ- अन्तक्रियाः च आख्यायन्ते । वगमणाई, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अंतगडदसाणं परित्ता वायणा, अन्तकृतदशासु परीताः वाचनाः, संखेज्जा अणओगदारा, संखेज्जा संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि, संख्येयाः वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखे- वेष्टाः, संख्येयाः श्लोकाः, संख्येयाः ज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ नियुक्तयः, संख्येयाः संग्रहण्यः, संख्येयाः संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिव- प्रतिपत्तयः । तोओ।
से णं अंगट्ठयाए अट्ठमे अंगे, एगे तद् अङ्गार्थतया अष्टमम् अंगम्, सुयक्खंधे, अवग्गा, अट्ठ उद्देसण- एक: श्रुतस्कन्धः, अष्टवर्गाः, अष्ट काला, अट्ट समुद्देसणकाला, उद्देशनकालाः, अष्ट समुद्देशनकाला:, संखेज्जाइं पयसहस्साई पयग्गेणं, संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रेण, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, संख्येयानि अक्षराणि, अनन्ता: गमाः, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनन्ताः पर्यवाः, परीता: त्रसा:, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध- अनन्ता: स्थावराः, शाश्वत-कृतनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा
निबद्ध-निकाचिताः जिनप्रज्ञप्ताः आघविज्जति पण्णविज्जति परू
भावाः आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते विज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जति दयन्ते निदर्श्यन्ते उपदर्श्यन्ते । उवदंसिर्जति।
अन्तकृतदशा में परिमित वाचनाएं, संख्येय अनुयोगद्वार, संख्येय वेढा(छंद-विशेष), संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियां, संख्येय संग्रहणियां और संख्येय प्रतिपत्तियां हैं ।
वह अंगों में आठवां अंग है। उसके एक श्रुतस्कन्ध, आठ वर्ग, आठ उद्देशन-काल, आठ समुद्देशन काल, पद परिमाण की दृष्टि से संख्येय हजार पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्यव हैं। उसमें परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है।
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