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________________ आमुख प्रस्तुत प्रकरण में श्रुतज्ञान परोक्ष का प्रतिपादन है । श्रुतज्ञान के प्रकारों के निरूपण में तीन परम्पराएं उपलब्ध हैं१. आवश्यक नियुक्ति की २. तत्त्वार्थ सूत्र की ३. कर्म ग्रंथ की। आवश्यक नियुक्ति में श्रुतज्ञान के अक्षरश्रुत आदि चौदह प्रकारों का निर्देश है।' तत्त्वार्थ सूत्र में श्रुतज्ञान के दो, अनेक और बारह प्रकारों का निर्देश है। श्रुतज्ञान के चौदह प्रकारों का उल्लेख वहां नहीं है। दो, अनेक और द्वादश प्रकारों का उल्लेख है उसका संबंध आगम ग्रन्थों से हैं'--- १. दो-१.अङ्गबाह्य, २. अङ्गप्रविष्ट । २. अनेक-अङ्गबाह्य के सामायिक, चतुर्विशतिस्तव आदि तेरह ग्रन्थ । ३ द्वादशविध-अङ्गप्रविष्ट के आचार आदि बारह ग्रन्थ । तत्त्वार्थ सूत्र की परम्परा आवश्यक नियुक्ति से भिन्न है। उमास्वाति के सामने अक्षरश्रुत आदि भेदों की परम्परा या तो नहीं रही अथवा उन्होंने उसकी अपेक्षा की। उन्होंने श्रुतज्ञान के प्राचीनतम अर्थ 'आगम ग्रन्थ' को ही मान्यता दी।' सम्यग्श्रुत में द्वादशाङ्ग का प्रतिपादन और मिथ्याश्रुत में भारत, रामायण आदि का उल्लेख है। मिथ्याश्रुत के प्रकरण में अनुयोगद्वार का अनुसरण है।' सम्यक्श्रुत और मिथ्याश्रुत के विकल्प नई शैली में प्रतिपादित हैं । चूर्णिकार ने उन विकल्पों की दृष्टांतपूर्वक व्याख्या की है। पर्यवान अधर का प्रतिपादन बहुत ही सूक्ष्म गणित के साथ हुआ है। चूर्णिकार ने अक्षर पटल का विस्तार से निरूपण किया है । सूक्ष्म सत्य की जानकारी के लिए वह बहुत मननीय है। इस प्रकार प्रस्तुत प्रकरण में अनेक महत्त्वपूर्ण सूत्रों का समाकलन प्राप्त होता है। कर्मग्रन्थ की परम्परा आगम की परम्परा से भिन्न है । वह भिन्नता अनेक स्थलों पर परिलक्षित है। देवेन्द्रसूरि ने प्रस्तुत आगम में निर्दिष्ट श्रुतज्ञान के चौदह प्रकार तथा बीस प्रकार दोनों का उल्लेख किया है। अनुमान किया जा सकता है कि चौदह भेदों की परम्परा का अनुसरण आवश्यक नियुक्ति और नंदी के आधार पर तथा बीस भेदों की परंपरा का अनुसरण षट्खण्डागम और गोम्मटसार के आधार पर किया गया है। अक्षर के तीन प्रकारों का प्रतिपादन प्रस्तुत आगम में ही उपलब्ध होता है ।१ षट्खण्डागम में 'अक्खरावरणीय' १. आवश्यक नियुक्ति, गा. १९: अक्खर सण्णी सम्म, साईयं खलु सपज्जवसि च । गमियं अंगपविट्ठ, सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥ २. तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्, ११२० : श्रुतं मतिपूर्व द्वयनेक द्वादश भेदम्। ३. तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्, १२० का भाष्य । ४. वही, श्रुतमाप्तवचनं आगमः उपदेश ऐतिहमाम्नायः प्रवचनं प्रावचनं जिनवचनमित्यनर्थान्तरम् । ५. नवसुत्ताणि, नंदी, सूत्र ६५,६७ ६. अणुओगदाराई, सू० ४९, ५० ७. नन्दी चूणि, पृ० ५० ८. नवसुत्ताणि, नंदी, सूत्र ७० ९. नन्दी चूणि, पृ० ५२ से ५६ १०. कर्मग्रन्थ, भाग १, गा० ६, ७ : अक्खर सन्नी सम्म साइ खलु सपज्जवसि च । गमियं अंगपविट्ठं सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥ पज्जय अक्खर पय संघाया पडिवत्ति तहय अणुओगो। पाहुडपाहुड पाहुड बत्थू पुव्व। य ससमासा ।। ११. नवसुत्ताणि, नंदी, सूत्र ६१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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