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________________ ५२ अचलगच्छ का इतिहास विभिन्न साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से जयकेशरीसूरि के कई शिष्यों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, जो इस प्रकार है : १. कीर्तिवल्लभगणि : इनके द्वारा रचित उत्तराध्ययनवृत्ति नामक एकमात्र कृति प्राप्त होती है, जो वि०सं० १५५२ में रची गयी है।४१ २. महीसागर उपाध्याय : इन्होंने गूर्जर भाषा में वि०सं० १४९८ में षडावश्यकविधि अपरनाम साधुप्रतिक्रमण की रचना की।४२ ३. धर्मशेखरगणि : वि०सं० १५०९ में लिखी गयी प्रतिक्रमणसूत्र की पुष्पिका में इनका नाम मिलता है जिसके आधार पर श्रीपार्श्व ने इन्हें जयकेशरीसूरि का शिष्य बतलाया है।४३ धर्मशेखरगणि के शिष्य उदयसागरगणि ने उत्तराध्ययनसूत्र पर वि०सं० १५४६ में ८५०० श्लोक परिमाण दीपिका की रचना की।४४ इनकी अन्य कृतियां शांतिनाथचरित,४५ कल्पसूत्रअवचूरि४६ आदि हैं। ४. भावसागरसरि : वि०सं० १५१२ के एक प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठपक मुनि के रूप में इनका उल्लेख मिलता है। श्री पार्श्व ने इस लेख की वाचना दी है,४७ जो इस प्रकार है : __ॐ संवत् १५१२ वर्षे फागुण सुदि ७ सो० (शु०) गांधीगोत्रे ऊसवंशे। सा० सारिंग सुत फेरु भा० सूहवदे पुत्री बाई सोनाई पुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिंब कारापितं श्रीअंचलगच्छे। प्रतिष्ठितं। श्री भावसागरसूरिभिः।। श्री पार्श्व ने इन्हें जयकेशरीसरि का शिष्य बतलाया है।४८ चूंकि उक्त प्रतिमालेख में कहीं भी ऐसी बात नहीं कही गयी है, जिससे कि श्रीपार्श्व के उक्त कथन का समर्थन हो सके; अत: ऐसी स्थिति में उक्त अभिलेख के आधार पर उनके मत को स्वीकार कर पाना कठिन है। अंचलगच्छ के १५वें पट्टधर के रूप में भी भावसागरसरि का नाम मिलता है, जो जयकेशरीसूरि के प्रशिष्य और सिद्धान्तसागरसूरि के शिष्य थे। वि०सं० १५१० में इनका जन्म हुआ, वि०सं० १५२० में इन्होंने मुनिदीक्षा प्राप्त की। वि० सं० १५६० में इन्हें आचार्य और गच्छेश पद प्राप्त हुआ एवं वि०सं० १५८३ में इनका देहान्त हो गया।४९ __ भावसागरसूरि नामधारी उक्त दोनों मुनिजनों को समय के अन्तराल आदि बातों को देखते हुए अलग-अलग व्यक्ति मानने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती। वि०सं० १५१९ के एक प्रतिमालेख में भी भावसागरसूरि का नाम मिलता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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