SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अचलगच्छ का इतिहास राधनपुर स्थित शान्तिनाथ जिनालय में रखी सम्भवनाथ की एक प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख से ज्ञात होता है कि मुनिशेखर के उपदेश से वि०सं० १४६८ में इसकी प्रतिष्ठा हुई थी। श्री पार्श्व ने इस लेख की वाचना १८ दी है, जो इस प्रकार है : १२ सं० १४६८ वर्षे का० २ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० कडूया भार्या ऊताया: सुता: श्री थाणारसी श्री ... .... भ्यां श्रीसंभवनाथबिंबं श्रीमुनिशेखरसूरीणामुपदेशेन पित्रुः भातृ वीरपाल श्रेयोर्थं कारापितं । वजाणाग्राम वास्तव्यः ।। इसी प्रकार वि० सं० १५१७ के एक प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठा हेतु प्रेरक के रूप में जयशेखरसूरि का नाम मिलता है। आचार्य बुद्धिसागरसूरि ने सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण उक्त लेख का मूलपाठ दिया है, जो निम्नानुसार है : सं० १५१७ वर्षे फा० श्रीवीरवंशे श्रे० चांपा भार्या जासु पुत्रमालाकेन भ्रा० पद्मिजीभाई सहितेन अंचलगच्छे जयशेखरसूरीणामुपदेशेन स्वश्रेयसे श्रीसुमतिनाथबिंबं कारापितं । । जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६८८. जयशेखरसूरि द्वारा रचित कृतियों में जैनकुमारसम्भव १९ और त्रिभुवनदीपकप्रबन्ध २० विशेष उल्लेखनीय हैं। जैनकुमारसम्भव पर इनके शिष्य धर्मशेखरगणि ने वि०सं० १४८३ / ई०स० १४२७ में टीका की रचना की । २१ आचार्य कलाप्रभसागरसूरि ने जयशेखरसूरि द्वारा रचित ५२ कृतियों का सविस्तार उल्लेख किया है । २२ जयशेखरसूरि द्वारा रचित विभिन्न स्तुतियां भी मिलती हैं । २३ जयशेखरसूरि के एक शिष्य मेरुचन्द्रगणि हुए जिनके उपदेश से विराटनगर के मन्त्री वाडव ने रघुवंश, कुमारसम्भव आदि महाकाव्यों तथा योगप्रकाश, वीतरागस्तोत्र, विदग्धमुखमण्डन आदि पर अवचूरि की रचना की । २४ जीरापल्लीपार्श्वनाथस्तोत्र भी इन्हीं की कृति है । २५ इसी मन्त्री ने वि०सं० १५०९ वैशाख सुदि १३ को एक जिनबिम्ब की भी प्रतिष्ठा की । २६ महेन्द्रप्रभसूरि के शिष्य एवं पट्टधर मेरुतुंगसूरि अपने समय के मूर्धन्य विद्वानों में से एक थे। इनके द्वारा रचित अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियां प्राप्त होती हैं जिनमें षट्दर्शनसमुच्चय, लघुशतपदी, जैनमेघदूतम, नेमिदूतमहाकाव्य, कातंत्रव्याकरणबालावबोधवृत्ति आदि उल्लेखनीय हैं । २७ इनके उपदेश से कई नूतन जिनालयों का निर्माण हुआ और बड़ी संख्या में जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई। ये प्रतिमायें वि०सं० १४४५ से वि० सं० १४७० तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है लेखांक ४० वि.सं. १४४५ Jain Education International कार्तिक वदि ११ रविवार .. प्र.ले.सं. भाग २ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy