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________________ अचलगच्छ के इतिहास के स्रोत पट्टावलियाँ इतिहास लेखन में अन्यान्य साधनों की भांति पट्टावलियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्वेताम्बर जैन मुनिजनों ने इनके माध्यम से इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है। शिलालेख, प्रतिमालेख और प्रशस्तियों से केवल हम इतना ही ज्ञात कर पाते हैं कि किस काल में किस मुनि ने क्या कार्य किया। अधिक से अधिक उस समय के शासक एवं मुनि के गुरु-परम्परा का भी परिचय मिल जाता है किन्तु पट्टावली में अपनी परम्परा से सम्बन्धित पट्ट परम्परा का पूर्ण परिचय होता है। इनमें किसी घटना विशेष के सम्बन्ध में अथवा किसी आचार्य विशेष के सम्बन्ध में प्राय: अतिशयोक्तिपूर्ण विवरण भी मिलते हैं अत: ऐतिहासिक महत्त्व की दृष्टि से इनकी उपयोगिता पर पूर्णरूपेण विश्वास नहीं किया जा सकता। चूंकि इनके संकलन या रचना में किम्बदन्तियों एवं अनुश्रुतियों के साथ-साथ कदाचित् तत्कालीन रास-गीत- सज्झाय आदि का भी उपयोग किया जाता है इसीलिये इनके विवरणों पर पूर्णतः अविश्वास भी नहीं किया जा सकता है और इनके उपयोग में अत्यधिक सावधानी बरतनी पड़ती है। ३ पट्टावलियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं। प्रथम शास्त्रीय पट्टावली और दूसरी विशिष्ट पट्टावली । प्रथम प्रकार में सुधर्मा स्वामी से लेकर देवर्धिगणि क्षमाश्रमण तक का विवरण मिलता है। कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की पट्टावलियाँ इसी कोटि में आती हैं। गच्छभेद के बाद की विविध पट्टावलियाँ विशिष्ट पट्टावली की कोटि में रखी जा सकती हैं। इनकी अपनी-अपनी विशिष्टतायें होती है। पट्टावलियों द्वारा ही आचार्य परम्परा अथवा गच्छ का क्रमबद्ध पूर्ण विवरण प्राप्त होता है, जो इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। श्वेताम्बर परम्परा में विभिन्न गच्छों की जो पट्ट परम्परा मिलती है, उसका श्रेय पट्टावलियों को ही है । अन्यान्य गच्छों की भांति अचलगच्छ के इतिहास के अध्ययन हेतु इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों द्वारा समय-समय पर रचित विभिन्न पट्टावलियाँ मिलती हैं। श्री सोमचन्द धारसी, कच्छ-अंजार वालों ने इस गच्छ की कुछ पट्टावलियों को गुजराती भाषा में अंचलगच्छम्होटी पट्टावली के नाम से वि०सं० १९८५ में प्रकाशित किया है। Jain Education International श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई द्वारा लिखित जैनगूर्जरकविओ और मुनि जिनविजय द्वारा सम्पादित विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह तथा मुनि कल्याणविजय द्वारा सम्पादित पट्टावलीपरागसंग्रह में इस गच्छ की पट्टावलियाँ दी गयी हैं। इसी प्रकार John Clate ने Indian Antiquary, Vol. XXIII, Page 169-183 पर इस गच्छ की एक पट्टावली प्रकाशित की है। प्रस्तुत पुस्तक में इन सभी का यथास्थान उपयोग किया गया है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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