________________
पुस्तक-परिचय
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समुदाय में अंचलगच्छ ( वर्तमान में अचलगच्छ) का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। वि.सं. 1169 में आचार्य आर्यरक्षितसूरि द्वारा विधिमार्ग की प्ररूपणा और उसका पालन करने के कारण यह गच्छ अस्तित्व में आया। इस गच्छ में आचार्य जयसिंहसूरि, धर्मघोषसूरि, महेन्द्रसिंह सूरि, धर्मप्रभसूरि, महेन्द्रप्रभसूरि, जयशेखरसूरि, मेरुतुंगसूरि, जयकेशरीसूरि आदि विभिन्न प्रभावक एवं विद्वान् आचार्य हो चुके हैं। वर्तमान युग में आचार्य गौतमसागरसूरि ने इस गच्छ में संविग्नमार्ग की पुनः प्रतिष्ठा की। उनके पट्टधर आचार्य गुणसागरसूरि ने उक्त कार्य को और आगे बढ़ाया। वर्तमान गच्छाधिपति गुणोदयसागर सूरीश्वर जी व आचार्य कलाप्रभसागर जी के 'कुशल मार्गदर्शन में यह गच्छ उत्तरोत्तर विकास के पथ पर अग्रसर है। इस गच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न शाखाएँ अस्तित्व में आयीं और समय के साथ-साथ नामशेष भी हो गयीं। इन सभी का शोधपूर्ण विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ में संग्रहीत है। अन्त में इस गच्छ के प्रमुख रचनाकारों के साहित्यावदान की सूची भी दी गयी है।
Jain Education International
For Privat
jainaniprary org