________________
Jain Education International
जि०र०को०, पृ० ३१०. जै०गू०क०,भाग ३, पृ० २६८. कै०गु०मै०, पृ० १४८.
कल्याणसागरसूरि । धर्ममूर्तिसूरि (अंचलगच्छ के १८वें पट्टधरः वि०सं० कल्याणसागरसूरि (रचनाकार) १६७०-१७१८) कल्याणसागरसूरि- कल्याणसागरसूरि शिष्य
कल्याणसागरसूरिशिष्य (रचनाकार)
(नाम अज्ञात)
१- मिश्रलिंगकोश २- पार्श्वनाथसहस्रनाम ३- गौडीपार्श्वनाथस्तोत्र ४- वीशी १- गुरु स्तुति २. गुरुप्रदक्षिणास्तुति
जै०गू०क०, भाग ५, पृ० ३३७. कै०गु०मै०, पृ० ३१७.
कीर्तिवल्लभगणि
उत्तराध्ययनदीपिकावृत्ति
For Private & Personal Use Only
सिद्धान्तसागरसूरि कीर्तिविल्लभगणि (रचनाकार)
| वि.सं. १५५२| जि०र०को०, पृ० ४४.
पीटर्सन, भाग ४, क्रमांक,
११८७, पृ० ७६. वि.सं. १७२१/ अंदि०, पृ० ३२४.
अचलगच्छीय मुनियों का साहित्यावदान
क्षमारत्न (अंचलगच्छ- गोरक्षशाखा)
गजसागरसूरि
चित्रसम्भूतचौपाई
पुण्यरत्न गुणरत्न क्षमारत्न
(रचनाकार)
www.jainelibrary.org
१६१