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________________ चतुर्थ अध्याय अचलगच्छीय मुनिजनों का साहित्यावदान साहित्य निर्माण में अचलगच्छ के विभिन्न विद्यानुरागी आचार्यों और मुनिजनों का उल्लेखनीय योगदान है। इस गच्छ के तृतीय पट्टधर धर्मघोषसूरि से साहित्यनिर्माण की जो परम्परा चली उसकी अखण्ड धारा आज भी निरन्तर प्रवाहित हो रही है। फलस्वरूप हजारों की संख्या में उल्लेखनीय छोटी-बड़ी रचनायें प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, मरु-गुर्जर आदि विभिन्न भाषाओं में विभिन्न विषयों पर प्राप्त होती हैं। अन्य गच्छों की भाँति अंचलगच्छ के साधु-साध्वी भी गाँव-गाँव में विहार करते थे अत: उनके द्वारा रचित साहित्य का बिखराव इतना अधिक हो गया कि उन सबका पता लगा पाना असम्भव है। असुरक्षा, अज्ञानता और उपेक्षा के कारण भी बहुत सारा साहित्य नष्ट हो गया फिर भी जो कुछ बचा है, उसे संरक्षित करने में विभिन्न संस्थाओं और व्यक्तियों का प्रयत्न सराहनीय है। अन्यान्य गच्छों की भाँति अञ्चलगच्छ के इतिहास के अध्ययन के क्रम में इस गच्छ के मनिजनों द्वारा रचित कृतियों का विवरण एकत्र करना प्रारम्भ किया और देखा कि ऐसी सामग्री विपुल परिमाण में है। अत: रचनाकारों को वर्णक्रमानुसार रखते हुए उनकी कृतियों का यथाज्ञात संक्षिप्त विवरण देने का निश्चय किया जिसका परिणाम प्रस्तुत सूची है। इसे संकलित करने में जैनगूर्जरकवियो, जैन साहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, जिनरत्नकोश, पूना, जैसलमेर, पाटण, अहमदाबाद, खम्भात आदि स्थानों पर संरक्षित जैन ग्रन्थ भण्डारों के सूचीपत्र, सुप्रसिद्ध विद्वान् भाई श्रीपार्श्व द्वारा प्रणीत अंचलगच्छदिग्दर्शन, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास-मरु-गूर्जर (भाग १-३) आदि से सहायता प्राप्त हुई है और इन सभी का यथास्थान उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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