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________________ अचलगच्छ- सागरशाखा का इतिहास अंचलगच्छ से समय-समय पर उद्भूत विभिन्न शाखाओं में सागरशाखा भी एक है। आचार्य धर्ममूर्तिसूरि के शिष्य महोपाध्याय रत्नसागर इस शाखा के आदिपुरुष माने जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके सागरान्त नाम के कारण उनके आज्ञानुवर्ती मुनिजन एवं उनकी शिष्य सन्तति सागरशाखा के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस शाखा के विद्याविलासी मुनिजनों में मेघसागर, विनयसागर, नयसागर, सौभाग्यसागर, ऋषि कीका, पद्मसागर, ऋद्धिसागर, सहजसागर, मानसागर आदि उल्लेखनीय हैं। _अंचलगच्छ की इस शाखा के इतिहास के अध्ययन के लिये इससे सम्बद्ध मुनिजनों की कृतियों की प्रशस्तियां तथा उनके द्वारा प्रतिलिपि कराये गये या स्वयं लिखे गये ग्रन्थों की प्रतिलिपि प्रशस्तियाँ मिलती हैं। यहाँ उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस शाखा के इतिहास की रूपरेखा प्रस्तुत है : ___ सागरशाखा के आदिपुरुष महोपाध्याय रत्नसागर द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न ही इस सम्बन्ध में कोई विवरण ही प्राप्त होता है, किन्तु इनकी आज्ञानुवर्ती साध्वी गुणश्री द्वारा रचित गुरुगुणचौबीसी से इनके बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। यह कृति वि०सं० १७२१/ई० सन् १६६५ में रची गयी है। इसके अनुसार महोपाध्याय रत्नसागर का जन्म वि० सं० १६२६ में हुआ, वि०सं० १६४१ में इन्होंने आचार्य धर्ममूर्तिसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की और रत्नसागर के नाम से जाने गये। वि०सं० १६४४ में इन्होंने कल्याणसागरसूरि के पास बड़ी दीक्षा ग्रहण की और उनके शिष्य के रूप में मान्य हुए। वि०सं० १६४८ में इन्होंने महोपाध्याय तथा मुनिमण्डलनायक के पद को सुशोभित किया। वि०सं० १६५५/ई०सन् १५९९ में इनके उपदेश से भरुच और खम्भात में श्रावकों ने जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा की। पालनपुर के नवाब की पत्नी का ६ माह पुराना ज्वर इन्होंने दूर कर सर्वत्र ख्याति अर्जित की। वि० सं० १७२०/ई०सन् १६६४ में कपडवज में इनका निधन हुआ।२ वि०सं० १७१९/ई० सन् १६६३ में मुनि सौभाग्यसागर द्वारा रचित वर्धमानपद्मसिंहश्रेष्ठिचरित से ज्ञात होता है कि वर्धमान पद्मसिंह शाह द्वारा भद्रावती से शजय की यात्रा हेतु निकाले गये संघ में गच्छनायक कल्याणसागरसूरि के साथ महोपाध्याय रत्नसागर भी थे।३ ___ रत्नसागर के आज्ञानुवर्ती और गुरुभ्राता विनयसागर द्वारा रचित कई कृतियां मिलती हैं : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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