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अचलगच्छ का इतिहास
११. Catalogye of Gujarati Mss, p. 655. १२. जैनगूर्जरकविओ, भाग २, (द्वितीय संशोधित संस्करण), पृ० २१०. १३. अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ३७१. १४. G. Buhler, "The Jaina Inscriptions From Satrumjaya", Epigraphia
Indica, Vol. II, Reprint, New Delhi 1984, No. 28, p. 68-71. १५. अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ३७०. १६. जैनगूर्जरकविओ, भाग ३ (द्वितीय संशोधित संस्करण), पृ० २३५. १७. अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ३९९.
जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, (द्वितीय संशोधित-संस्करण) पृ० २५३. १८. Catalogue of Gujarati Mss. p. 644; धनामहामुनिसंधि भी इन्हीं की कृति
है। वही, पृ० ७१९.। १९. यह कृति श्री अगरचन्द भंवरलाल नाहटा द्वारा श्री अभय जैन ग्रन्थमाला,
ग्रन्थांक-२२ के अन्तर्गत रत्नपरीक्षा के पृष्ठ ८९-१५५ पर प्रकाशित है।
विस्तार के लिये द्रष्टव्य- अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृष्ठ ४७०. १९अ.अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ४७१. २०. वही, पृ० ४७१. २१. इति श्रीगन्धर्वराजपुष्दन्तविरचितं महिम्नस्तोत्रं समाप्तम्।।
संवत् १८१३ वर्षे आसो वदि २ दिने श्रीकच्छदेशे ग्रामश्रीसाभराईमध्ये श्रीअंचलगच्छे वा० श्री १०८ श्रीलक्ष्मीशेखरजीगणि- तत्शिष्यपं० श्री ५ लावण्यशेखरजीगणितत्शिष्य मुनिश्री ५ अमृतशेखरगणि- तत्शिष्यपङ्कजभ्रमरमुनिज्ञानशेखरगणिलिपिकृतार्थे।। A.P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss : Muni Shree PunyaVijayaJis Collection, Part II, L.D. Series, No. 5, Ahmedabad,
1965 A.D., page 266. २२. अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ४७१. २३. वही, पृ० ४०२.
जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, (द्वितीय संशोधित संस्करण), पृ० ३५४. २४. Catalogue o Gujarati Mss, p. 570. २५. ते शाखा मांहि अति भली, पालीताणी शाखा गुणनिली,
पालिताचार्य कहीइ जेह, हुआ गछपति जे गुणगेह।। ९६ ।।
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