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अचलगच्छ का इतिहास
अचलगच्छ-पालिताना शाखा में ही हुए क्षमाशेखर नामक मुनि और उनके सतीर्थ्य माणिक्यशेखर और सकलशेखर ने वि० सं० १६८३/ई०स० १६२७ में उपदेशमालाबालावबोध की रचना की। २३ इस कृति की प्रशस्ति में उन्होंने स्वयं को सुमतिशेखर का प्रशिष्य और सौभाग्यशेखर का शिष्य बतलाया है
सुमतिशेखर
सौभाग्यशेखर
क्षमाशेखर
माणिक्यशेखर सकलशेखर (वि०सं० १६८३/ई०स० १६२७ में उपदेशमालाबालावबोध के रचनाकार)
वि०सं० १७१९/ई०स० १६६३ में हंसराजवत्सराजचौपाई के प्रतिलिपिकार नयनशेखर भी इसी शाखा के थे। २४ उनके द्वारा वि०सं० १७३६/ई०स० १६८० में रचित योगरत्नाकरचौपाई नामक कृति प्राप्त होती है। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है,२५ जो इस प्रकार है :
वा० पुण्यतिलक
वा० सुमतिशेखर सा० सौभाग्यशेखर वा० ज्ञानशेखर
वा० नयनशेखर (वि० सं० १७३६/ई०स० १६८०
में योगरत्नाकरचौपाई के कर्ता) जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं उपदेशमालाबालावबोध (रचनाकाल वि०सं० १६८३/ई०स० १६२७) के रचनाकार क्षमाशेखर, माणिक्यशेखर और सकलशेखर स्वयं को सुमतिशेखर का प्रशिष्य और सौभाग्यशेखर का शिष्य बतलाते हैं। योगरत्नाकरचौपाई की प्रशस्ति में भी रचनाकार नयनशेखर ने सुमतिशेखर, सौभाग्यशेखर आदि को अपना पूर्वज बतलाया है। उक्त दोनों प्रशस्तियों में उल्लिखित गुरु-परम्परा की तालिकाओं के परस्पर समायोजन से एक बड़ी तालिका संगठित की जा सकती है, जो इस प्रकार है :
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