________________
१३६
अचलगच्छ का इतिहास
वाचक सत्यशेखर के दूसरे शिष्य वाचक विवेकशेखर द्वारा वि०सं० १६४८/ ई०स० १५९२ पौष सुदि ३ बुधवार को साध्वी विमला की शिष्या कुशललक्ष्मी के पठनार्थ शांतिमृगसुन्दरीचौपाई की प्रतिलिपि की गयी।१५
वाचक विवेकशेखर के एक शिष्य वाचक विजयशेखर हुए। इनके द्वारा रचित नलदमयन्तीप्रबन्ध (वि०सं० १६७२/ई०स० १६१६) लाहद्रापुर? में रचित; कयवन्नारास (वि०सं० १६८१/ई०स० १६२५); सुदर्शनरास (वि०सं० १६८१/ ई०स० १६२५); चन्द्रलेखाचौपाई (वि० सं० १६८९/ई० स० १६३३); त्रणमित्रकथा (वि०सं० १६९२/ई०स० १६३६); चंदराजाचौपाई (वि०सं० १६९४/ई०स० १६३८); ऋषिदत्तारास (वि०सं० १७०७ ?) आदि कई कृतियां मिलती हैं। सभी कृतियों में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है :
अंचलगछ गिरुउ गुणसागर रतनकरंड समानजी, भट्टारक श्री कल्याणसागरसूरि, जंगमजुगपरधानजी। तस पखि दीपक वाचक पद घर विवेकशेखर मुणिंदजी,
तस सीस पंडित विजयशेखर कहि धरम महिम आणंद जी।। वाचक विवेकशखर के दूसरे शिष्य वाचक भावशेखर हुए। इनके द्वारा वि०सं० १६७२ से वि०सं० १७३० के मध्य विभिन्न ग्रन्थों की प्रतिलिपि की गयी जिनका विवरण इस प्रकार है१७ : १. वि०सं० १६७२/ई०स० १६१६ में भुज में चम्पकमालारास। २. वि०सं० १६७४/ई०स० १६१८ में भुज में गुणवर्मचरित। ३. वि०सं० १७०४/ई०स० १६४८ में अपने शिष्य भुवनशेखर के पठनार्थ
कायस्थितस्तवनअवचूरि।
वि०सं० १७१७/ई०स० १६६१ में अंजार में उपदेशचिन्तामणि। ५ वि०सं० १७२०/ई०स० १६६४ में भुज में साध्वी हेमा की शिष्या साध्वी
पद्मलक्ष्मी के पठनार्थ साधुवन्दना। वि०सं० १७३०/ई०स० १६७४ में ईलमपुर में रत्नपरीक्षासमुच्चय।
इनके द्वारा रचित एकमात्र कृति है रूपसेनऋषिरास, जो वि०सं० १६८३/ ई०स० १६२७ की रचना है। १८
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है वाचक भावशेखर के एक शिष्य भुवनशेखर हुए जिनके पठनार्थ इन्होंने वि०सं० १७०४/ई०स० १६४८ में कायस्थितस्तवनअवचूरि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org