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अचलगच्छ की विभिन्न उपशाखायें और उनका इतिहास अचलगच्छ- चन्द्रशाखा (द्वितीय परम्परा)
चन्द्रशाखा की द्वितीय परम्परा वाचक पुण्यचन्द्र के दूसरे शिष्य एवं पट्टधर विमलचन्द्र से प्रारम्भ होती है। विमलचन्द्र के शिष्य कुशलचन्द्र और कुशलचन्द्र के शिष्य भक्तिचन्द्र हुए। इन सभी द्वारा रचित न तो कोई कृति ही मिलती है और न ही कोई इस सम्बन्ध में उल्लेख ही प्राप्त होता है। भक्तिचन्द्र के शिष्य एवं पट्टधर मानचन्द्र हुए, जिनके द्वारा रचित कुछ कृतियां प्राप्त होती हैं,१० जो इस प्रकार हैं :
१. चन्द्रचिन्तामणि २. अनुपममंजरी ३. खगोलगणित ४ विद्यासागररास ५. ज्योतिषफल
मानचन्द्र के पट्टधर कल्याणचन्द्र और कल्याणचन्द्र के पट्टधर सौभाग्यचन्द्र हुए। इनकी ख्याति मंत्रवादी के रूप में थी। वि०सं० १८४८ में इन्होंने विंआण में एक पोशाल का निर्माण कराया। १२ इनके पट्टधर के रूप में श्रीपार्श्व ने खुशालचन्द्र का उल्लेख किया है। १३ वि०सं० १८६० में खुशालचन्द्र की मृत्यु के पश्चात् उनके दो शिष्यों --- मूलचन्द्र और खीमचन्द्र से अलग-अलग शिष्य परम्परायें चलीं। खीमचन्द्र की परम्परा में क्रमश: करमचन्द्र, ज्ञानचन्द्र, भाग्यचन्द्र, हुकुमचन्द्र, लक्ष्मीचन्द्र, मोहनलाल और दुलीचन्द्र हुए। यह परम्परा डुमरानीपोशाल के यतियों की परम्परा के नाम से जानी जाती है। १४ खुशालचन्द्र के दूसरे पट्टधर मूलचन्द्रजी के दो शिष्योंसुमतिचन्द्र और तिलकचन्द्र- से अलग-अलग शिष्य परम्परायें चलीं। सुमतिचन्द्र की परम्परा में क्रमश: ताराचन्द्र, गुलाबचन्द्र और गुणचन्द्र पट्टधर हुए। यह परम्परा विंजालपोशाल के नाम से जानी जाती है।१५ तिलकचन्द्र की परम्परा में उनके बाद क्रमश: मानचन्द्र, जवेरचन्द्र और केशवजी हुए।१६
मानचन्द्र के द्वितीय पट्टधर के रूप में वीरचन्द्र का नाम मिलता है। इनकी परम्परा में क्रमश: विद्याचन्द्र, त्रिकमचन्द्र, रामचन्द्र, प्रतापचन्द्र, करमचन्द्र और हीराचन्द्र हुए। यह परम्परा रायणपोशालशाखा के नाम से जानी जाती है। १६ श्रीपार्श्व ने भुजपुर, नालिया और सुथरी में इस शाखा के यतियों के पोशल होने की बात कही है। १८ उन्होंने इस शाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की जो सूची दी है, उसके आधार पर एक तालिका निर्मित की जा सकती है, जो इस प्रकार है :
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