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________________ १२४ अचलगच्छ का इतिहास रचित कुछ कृतियां मिलती हैं । ६ जो इस प्रकार हैं : रचनाकाल वि० सं० १७३४ १. साधुवन्दना २. साधुगुणाभास ३. वीरवंशानुक्रम अपरनाम अंचलगच्छपट्टावली रचनाकाल वि०सं० १७६३ ४. गौडीपार्श्वनाथचौढालिया रचनाकाल, वि०सं० १७६३. पुण्यचन्द्र के दूसरे शिष्य माणिक्यचन्द्र और माणिक्यचन्द्र के शिष्य सौभाग्यचन्द्र हुए। इनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके पट्टधर रयणचन्द्र द्वारा वि०सं० १६९३ में प्रतिलिपि की गयी ऋषिमण्डलस्तोत्र की प्रति प्राप्त होती है । ७ इसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा निम्नानुसार दी है : वाचक पुण्यचन्द्र माणिक्यचन्द्र I सौभाग्यचन्द्र I रयणचन्द्र पुण्यचन्द्र की परम्परा में ही हुए स्थानसागर ने वि०सं० १६८५ में अगडदत्तरास' की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : Jain Education International (वि० सं० १६९३ में ऋषिमण्डलस्तोत्र के प्रतिलिपिकार) वाचक पुण्यचन्द्र | कनकचन्द्र I वीरचन्द्र I स्थानसागर (वि.सं. १६८५ में अगडदत्तरास के कर्ता) स्थानसागर के गुरुभ्राता ज्ञानसागर ने वि० सं० १६७८ में सिंहासनद्वात्रिंशिका की प्रतिलिपि की । ९ इसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु- परम्परा दी है, जो प्रकार है : इस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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