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________________ अचलगच्छ- चन्द्रशाखा अंचलगच्छ की विभिन्न उपशाखाओं में चन्द्रशाखा भी एक है। प्रचलित मान्यतानुसार अंचलगच्छ के १६वें पट्टधर आचार्य गुणनिधानसूरि के शासनकाल में वि०सं० १५८५ के आसपास वाचक पुण्यचन्द्र ने अमावस्या की रात्रि को पूर्णिमा में बदल दिया था, इसी कारण इनकी शिष्य सन्तति चन्द्रशाखा के नाम से जानी गयी। इस शाखा के इतिहास के अध्ययन के लिये भी न तो कोई पट्टावली मिलती है और न ही प्रतिमालेखों आदि में इस शाखा के मुनिजनों का नाम मिलता है। इस शाखा से सम्बद्ध मात्र कुछ ग्रन्थ प्रशस्तियां ही मिलती हैं। इसके अलावा इस शाखा के कुछ मुनिजनों की नामावली श्रीपार्श्व ने दी हैं। साम्प्रत आलेख में उन्हीं सीमित साक्ष्यों के आधार पर इस शाखा के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत है। चन्द्रशाखा की दो परम्परायें मिलती हैं। इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है : चन्द्रशाखा - प्रथम परम्परा चन्द्रशाखा के आदिपुरुष वाचक पुण्यचन्द्र द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न ही इस सम्बन्ध से कोई उल्लेख ही मिलता है। यही बात इनके शिष्य माणिक्यचन्द्र, माणिक्यचन्द्र के पट्टधर विनयचन्द्र और विनयचन्द्र के पट्टधर रविचन्द्र के बारे में भी कही जा सकती है। रविचन्द्र के शिष्य एवं पट्टधर देवसागर हुए, जिनके द्वारा रचित कुछ कृतियां प्राप्त होती हैं। १- कपिलकेवलीरासरे रचनाकाल वि०सं० १६७४ २- व्युत्पत्तिरत्नाकर३ रचनाकाल वि०सं० १६८६ व्युत्पत्तिरत्नाकर की प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : वाचक पुण्यचन्द्र माणिक्यचन्द्र विनयचन्द्र रविचन्द्र वाचक देवसागर (कपिलकेवलीरास एवं व्युत्पत्तिरत्नाकर के रचनाकार) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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