SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अचलगच्छ का इतिहास पर इस प्रकार लेख है - “संवत् १६७४ वर्षे आषाढ़ सुदि ९ गुरौ श्री अचल गच्छे पू० भट्टारक श्री धर्ममूर्ति सूरि पादुका कारितं श्री संघेन। श्री जेसलमेरु महादुर्गे रावलजी कल्याण'' गुणग्राहक महोपाध्याय समयसुन्दरजी ने अपने समय के तीन महान् आचार्यों को अपने गणनायक के समान प्रभावक और जिन शासन का सितारा मान कर स्तुति की है भट्टारक तीन भये बड़ भागी। जिण दीपायो श्री जिन शासन सबल पडूर सोभागी। भ०१। खरतर श्री जिनचन्द्र सूरीसर, तपा हीर विजय वैरागी। विधि पक्ष धरममूर्ति सूरीसर, मोटो गुण महा त्यागी। भ०२। मत कोउ गर्व करो गच्छ नायक, पुण्य दशा हम जागी। समयसुन्दर कहइ तत्त्व विचारउ, भरम जाय जिण भागी। भ०३। यह एक संयोग ही समझिये कि श्री धर्ममूर्तिसूरिजी की चरणपादुका भी समयसुन्दरजी के उपाश्रय में संघ द्वारा रखी गयी है। अचलगच्छ के आचार्य जिनालय निर्माण आदि का उपदेश देकर धर्म प्रचार करते और प्रतिभादि प्रतिष्ठा की प्रेरणा देते किन्तु स्वयं प्रतिष्ठापक बन कर अपना नाम नहीं देते थे। अंचलगच्छ की कई धातु प्रतिमाओं के पृष्ठ भाग में खड़ी हुई पुरुषाकृति दृष्टिगोचर होती है जो इन्द्रादि की हो सकती है। आगरा के आंगाणी लोढ़ा कुंअरपाल सोनपाल ने जब सम्मेतशिखर जी का सं० १६७१ में संघ निकाला तब तलहटी में अधिष्ठाता श्री भोमियाजी की मूर्ति स्थापित की थी, जिसकी प्रतिष्ठा संघ में पधारे हुए खरतरगच्छीय मुनि विनयसागर से कराई गयी थी। लेख जो प्राप्त हुआ वह श्री भोमियाजी के मन्दिर में एक स्तम्भ पर लगाया गया है - ___ सं० १६७१ वर्षे वैशाख कृष्णैकादश्यां आगरा निवासी संघपति आंगाणी लोढ़ा श्री कुंअरपाल सोनपालेन पतिसाह जहांगीर फरमाणेन संघ सह यात्रा कृत्वा सिखर गिरि तलहट्टिकायां वट वृक्ष तने अधिष्ठायक क्षेत्रपाल श्री भोमियाजी व कुलिका स्थापिता पालगंजराज श्री पृथ्वी संघ राज्ये प्रतिष्ठिता खरतरगच्छे मुनि विनयसागरेन। विधि पक्ष अचल गच्छे।। ___ लेखन ने अचलगच्छ और उसकी विभिन्न शाखाओं का शोधपूर्ण इतिहास तथा इस गच्छ के अनुयायियों के साहित्यावदान का विवरण प्रस्तुत कर प्रसंशनीय कार्य सम्पन्न किया है। (भंवरलाल नाहटा) ४, जगमोहन मल्लिक लेन कलकत्ता ७००००७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy