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________________ अचलगच्छ का इतिहास १०१ १९. २०. २६. Jinaratnakosha, p. 94. Ibid, p. 162. २१. Ibid, p. 94. २२. मुनि कलाप्रभसागर, सम्पा०- आर्यकल्याणगौतमस्मृतिग्रन्थ, भाग १, विभाग २, पृ० ६९-७५. २३. वही, पृ० ७०-७२. २४-२५.महोपाध्याय विनयसागर, "विराटनगर का एक अज्ञात टीकाकार- वाडव" आर्यकल्याणगौतमस्मृतिग्रन्थ, भाग ३, हिन्दी विभाग, पृ० ७५-७८. एवं वही, भाग १, विभाग २, पृ० ७९. आचार्य कलाप्रभसागर जी, श्री अचलगच्छ के आचार्यों की जीवन ज्योति अपरनाम लघुपट्टावली, बाडमेर, वि०सं० २०३५, पृ० ९८. यह लेख कहां से प्राप्त हुआ है इस सम्बन्ध में आचार्य कलाप्रभसागर जी ने कुछ नहीं बतलाया है। २७. श्रीपार्श्व, अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० २२०-२२३. वही, पृ० २३१-२३२. वही, पृ० २६३. श्रीपार्श्व, अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० २४०. वही, पृ० २४० एवं अम्बालाल प्रेचमन्द शाह, कालकाचार्यकथासंग्रह, पृ० ६६. अंचलगच्छ की अन्य शाखाओं की तरह इस शाखा का भी स्वतन्त्र रूप से इतिहास लिखा गया है जो अद्यावधि अप्रकाशित है। ३३. अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक ५४६. ३४. श्रीपार्श्व, अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० २४४. ३५-३६. वही, पृ० २४४. ३७. गच्छाधिपश्रीजयकीर्तिसूरिशिष्यो महीमेरुरहं स्तवं ते। कृत्वा क्रियागुप्तकवित्वमित्थं त्वामेव दध्यां हृदये जिनेन्द्र।। ५३ ।। 'जिनस्तुतिपंचाशिका' मुनिश्री चतुरविजय, सम्पा० जैनस्तोत्रसन्दोह, भाग १, प्राचीन जैन साहित्योद्धार ग्रन्थावली, पुष्प १, अहमदाबाद, १९३२ई०स०, पृ०३६-४२. २८. २९. سه سه سه २ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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