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________________ अचलगच्छ का इतिहास ९५ वहा,ला ६. १९५० पौष वदि ५ भृगुवार पार्श्वनाथ जिनालय, वही, लेखांक ९६७ (शुक्रवार) रापर,गढवारी-कच्छ ७. १९५० फाल्गुन सुदि २ गुरुवार अजितनाथ जिनालय, वही, लेखांक ९६८ वांकू, कच्छ ८. १९६० श्रावण सुदि ५ गुरुवार केशवजी ढूंक, वही, लेखांक ९९९ शत्रुञ्जय ९. १९८८ वैशाख वदि ७ गुरुवार आदिनाथ जिनालय, वही,लेखांक १०३८ वारापधर, कच्छ १०.१९९० द्वितीय वैशाख वदि ५ जैन मन्दिर, वही,लेखांक १०४० शनिवार सुजापुर, कच्छ आचार्य गौतमसागरसूरीश्वर जी महाराज ____ कच्छ-हालार देशोद्धारक, महान् क्रियोद्धारक सुविहित शिरोमणि के रूप में विख्यात् आचार्य गौतमसागर जी का जन्म वि० सं० १९२० में मारवाड़ के पाली नगर में हुआ था। ये जाति से ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम धीरजमल और माता का नाम खेमलदे था। बचपन का इनका नाम गुलाबमल था। वि०सं० १९२५ में मारवाड़ में जब अकाल पड़ा तो उस समय अंचलगच्छीय ४ यति- देवसागरजी, अभयचन्दजी, वीरचन्दजी और नानचन्दजी पाली आये। यहाँ उन्हें कुल ८ शिष्यों की प्राप्ति हुई। यति देवसागर जी ने धीरजमल जी से मित्रता कर ली और उनके यहाँ आने-जाने लगे। बालक गुलाबमल के शरीर से शुभ लक्षणों को देखकर यति जी ने धीरजमल जी से उनके पुत्र की मांग की जिस पर उन्होंने अपनी पत्नी से विचार-विमर्श करके गुलाबमल को सहर्ष उन्हें सौंप दिया। इस प्रकार उक्त चारों यतियों के पास कुल ९ शिष्य हो गये जिन्हें लेकर वे कच्छ लौट गये। यति देवसागर जी ने गुलाबमल और कल्याणमल ये दो बालक अपने पास रखे और उन्हें लेकर छोटा आसंबिया आये जहाँ अपने शिष्य स्वरूपसागर को उक्त दोनों बालक सौंपकर उनका गृहस्थ शिष्य बनाया। गुलाबमल का नाम ज्ञानचन्द रखा गया, यही आगे चलकर गौतमसागर जी के नाम से विख्यात हुए। वि०सं० १९२८ तक स्वरूपसागर जी भुज और छोटी आसंबीया में रहे। वि०सं० १९२८ श्रावण सुदि ३ को सुथरी में अंचलगच्छनायक श्रीपूज्य रत्नसागर जी का निधन हो गया तत्पश्चात् उनके शिष्य विवेकसागर ने गच्छनायक का पद संभाला। श्रीपूज्य विवेकसागरसूरि के पाटमहोत्सव पर स्वरूपसागरजी अपने शिष्यों के साथ मांडवी आये और वहाँ से अन्य यतियों के आग्रह से श्रीपूज्य विवेकसागर जी के साथ शत्रुञ्जय की यात्रा पर गये। वहाँ से सभी पावागढ़ और अन्त में मुम्बई गये। मुम्बई में विवेकसागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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