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________________ अचलगच्छ का इतिहास क्रमांक वि०सं० माह-तिथि-वार १. १८०१ - संदर्भ ग्रन्थ अं.ले.सं., लेखांक ८०३. १८१२ माघ सदि २ शक्रवार वही, लेखांक ८११. १८१४ माघ वदि ५ सोमवार वही, लेखांक ८१२. १८१५ फाल्गुन सुदि ७ सोमवार वही, लेखांक ८१४. १८२१ माघ वदि ५ सोमवार वही, लेखांक ८२६. १८२७ माघ वदि २ शुक्रवार वही, लेखांक ८२९. इनमें से अधिकांश संभवनाथ जिनालय, गोपीपुरा-सूरत में रखी जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं। विस्तार के लिये द्रष्टव्य- अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक ३२०-२१, ८०३-२९। उदयसागरसूरि द्वारा रचित कृतितों में वीरजिनस्तवन, भावप्रकाश अपरनाम भावसज्झाय, गुणवर्मरास, कल्याणसागरसूरिरास, स्नात्रपंचाशिका आदि प्रमुख हैं।९७ वि०सं० १८२६ में सूरत में ही इनका निधन हुआ। यदि श्रीपार्श्व की विक्रम सम्वत् १८२७ माघ वदि २ शुक्रवार वाले लेख की वाचना को सही मानें तो पट्टावलियों से प्राप्त इनके निधन की तिथि अप्रमाणिक सिद्ध हो जाती है। इनके पट्टधर कीर्तिसागरसूरि हुए। वि०सं० १८३१ से १८४३ के मध्य प्रतिष्ठापित अंचलगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठा हेतु प्रेरक के रूप में इनका नाम मिलता हैं। इनका विवरण इस प्रकार है कीर्तिसागर सूरि की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं की तालिका क्रमांक वि० सं० माह-तिथि-वार संदर्भ ग्रन्थ १. १८३१ माघ वदि ५ सोमवार अं.ले.सं., लेखांक ८३३. (संभवनाथ जिनालय, गोपीपुरा-सूरत में इसी तिथि की प्रतिष्ठापित १० अन्य जिनप्रतिमायें भी हैं। यद्यपि इनमें कीर्तिसागरसूरि का नाम नहीं मिलता फिर भी इनके निर्माण-प्रतिष्ठापना की प्रेरणा उक्त आचार्य से ही प्राप्त हुई होगी ऐसा निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है।९८ २. १८४३ वैशाखसुदि ६ सोमवार अंले.सं., लेखांक ८४५ ३. १८४३ वैशाखसुदि ६ सोमवार वही, लेखांक ८४६ A Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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