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________________ ७६ अचलगच्छ का इतिहास आचार्य धर्ममूर्तिसूरि के निधन के पश्चात् कल्याणसागरसूरि उनके पट्टधर बने। विभिन्न पट्टावलियों में धर्ममूर्तिसूरि का देहावसान काल वि०सं० १६७० दिया गया है, परन्तु कल्याणसागरसूरि की विद्यमानता में रायमल्लगणि के शिष्य मुनि लाखा द्वारा रचित गुरुपट्टावली के अनुसार वि०सं० १६७१ में पाटण में आचार्य धर्ममूर्तिसूरि का देहान्त हुआ और इसी वर्ष पौष वदि ११ को कल्याणसागरसूरि गच्छाधिपति बनाये गये।६७ पट्टावलियों में इनके सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण विवरण प्राप्त होते हैं। इनके समय में जैन समाज में पारस्परिक तनाव चरम सीमा पर था; किन्तु ये भेदमूलक प्रवृत्तियों से सदैव दूर रहकर स्वगच्छ सम्पोषण में ही अनुरक्त रहे। गुजरात, कच्छ और राजस्थान तक इनका विहार क्षेत्र रहा। नव्यनगर (नवानगर) के निवासी राजमान्य श्रेष्ठी राजसी शाह (राजसिंह शाह) कल्याणसागरसरि के परम भक्त थे। इन्होंने नवानगर में एक भव्य जिनालय बनवाया६८ और उसमें वि० सं० १६७२ में कल्याणसागरसूरि की निश्रा में बड़ी संख्या में जिन प्रतिमाओं की अंजनशलाका सम्पन्न हुई।६९ इन्होंने शत्रुजय तथा अन्य तीर्थस्थानों पर भी जिनालयों का निर्माण कराया। इनके द्वारा कई उपाश्रयों का भी निर्माण हुआ और संघपति के रूप में इन्होंने शत्रुजय तथा गौड़ीपार्श्वनाथ तीर्थ की यात्रा की।७० आगरा के प्रसिद्ध श्रेष्ठी तथा सम्राट जहांगीर के विश्वासपात्र कुंवरपाल एवं सोनपाल भी कल्याणसागरसूरि के परम भक्त थे। आचार्य धर्ममूर्तिसूरि की प्रेरणा से उक्त श्रेष्ठी बन्धुओं ने आगरा में दो भव्य जिनालयों का निर्माण कराया।७१ आचार्य कल्याणसागरसूरि की निश्रा में वि०सं० १६७१ वैशाख सुदि ३ को इन जिनालय में ४५० जिनप्रतिमाओं की अंजनशलाका सम्पन्न हुई।७२ इनमें से अनेक प्रतिमायें आज भी मिलती हैं, जो भिन्न-भिन्न स्थानों पर आज भी पूजा में हैं।७३ मूलत: कच्छ निवासी और जामनगर में जाकर बसे हुए श्रेष्ठी वर्धमान शाह और उनके भ्राता पद्मसिंह शाह भी कल्याणसागरसूरि के निकटस्थ श्रावकों में से थे।७४ वि०सं० १६७६ में इन्होंने शत्रुजय पर एक भव्य जिनालय का निर्माण कराया।७५ शत्रुजय स्थित हाथीपोल दरवाजे के दाहिने ओर ३१ पंक्तियों का एक शिलालेख उत्कीर्ण है। इसमें वर्धमान शाह की वंशावली तथा आचार्यों का पट्टानुक्रम आदि दिया गया है, जो इस गच्छ के इतिहास लेखन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।७६ इसी प्रकार इन्होंने जामनगर, भद्रावती (कच्छ), पावागिरि आदि स्थानों पर भी निर्माण कार्य कराया।७७ कल्याणसागरसूरि द्वारा रचित छोटी-बड़ी कुल ३२ कृतियों का उल्लेख मिलता है,७८ जो निम्नानुसार हैं - १. शांतिनाथचरित्र, २. सुरप्रियचरित्र, ३. श्रीजिनस्तोत्र, ४. बीसविहरमानजिनस्तवन, ५. अगडदत्तरास, ६. पार्श्वनाथ सहस्रनाम, ७. मिश्रलिंगकोश, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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