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जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
ताड़पत्रों पर चित्रित श्राविकाएं
बारहवीं शताब्दी में खरतरगच्छ के प्रभावशाली आचार्य श्री जिनदत्तसूरी हुए थे। उनसे धर्मदेशना सुनने में तत्पर श्राविकाएं एवं भक्ति से अभिभूत नमस्कार की मुद्रा में श्रद्धाशील श्राविकाएं चित्र में दृष्टिगोचर होती हैं। इसी प्रकार आचार्य श्री जिनवल्लभसूर की धर्मदेशना में सम्मिलित श्राविकाएं भी चित्र में दष्टव्य हैं। यह चित्र जैसलमेर स्थित श्री जिनभद्रसूरि ज्ञान भंडार एवं पालीताणा स्थित श्री जिनहरिसागरसूरि ज्ञान भंडार में संग्रहित हैं। दादा जिनदत्तसूरि श्री की धर्मसभा में उपस्थित श्राविकाओं के चित्र विशिष्ट सुसज्जित वेश-भूषा एवं सिर से पांव तक अलंकारों से सुशोभित हैं। पालीताणा के चित्रों में अपेक्षाकृत श्राविकाओं के चित्र सादगीमय हैं। चित्र कालक्रम से क्रमशः तेरहवीं चौदहवीं पंद्रहवीं एवं सोलहवीं शती के हैं।
१.७ चित्र सं. (४)
आचार्य शिरोमणि श्री जिनवल्लभसूरि जी म. की सभा में धर्मश्रवण करती हुई जैन श्राविकाएँ
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बारहवीं सदी, काष्ठपट्टिका, श्री जिनहरिसागरसूरि ज्ञान भण्डार, पालीताना
युगप्रधान दादा श्री जिनदत्तसूरि जी म. की सभा में जैन श्राविकाएँ
श्रीजिनदत्त स्थः
बारहवीं सदी, काष्ठपट्टिका, श्री जिनहरिसागरसूरि ज्ञान भण्डार, पालीताना
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(चित्र साभार : महोपाध्याय विनय सागर, खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास पृ. ३७७ के साथ संलग्न) (रचनाकाल १५र्वी - १६वीं शती) www.jainelibrary.org