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सुना कि उनके पति जीवित हैं और वे पुणे के सैनिक अस्पताल में हैं। उन्हें पहले ही दिन बचा लिया गया था। यह सुनकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । १३४
७. १४२ प्रज्ञा जैन :
आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान
२३ वर्षीय प्रज्ञा जैन उस्मानाबाद निवासी श्रीमान् विजयकुमार जी एवं श्रीमती शोभा जैन की सुपुत्री हैं। आपने लॉ कॉलेज उस्मानाबाद से बी. एस. एल. एल. बी की परिक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। आपने जज बनने की परीक्षा भी प्रदान की है तथा डिस्ट्रिक्ट कोर्ट उस्मानाबाद में दो तीन माह से अभ्यासरत हैं। जैन धर्म एवं नियमों के प्रति आपकी पूर्ण आस्था है । १३५ ७. १४३ श्रीमती नीलम जैन :
आप होशियारपुर निवासी श्रीमान् मस्तराम जी जैन एवं श्रीमती लाजवंती जैन की सुपुत्री हैं। लुधियाना निवासी श्रीमान राजेंद्र कुमार जी जैन की धर्मपत्नी हैं। आपका जन्म सन् १६४४ में हुआ था। आपकी तीन पुत्रियाँ हैं। रिजुता, विदुता एवं विभूति । श्रीमती नीलम जैन ने अपना आध्यात्मिक जीवन सन् १६६२, ६३ से श्री समुद्रसूरि जैन दर्शन शिविर के माध्यम से प्रारंभ किया था। आपके आध्यात्मिक गुरू श्रीमद् विजयजनक चंद्रसूरिश्वर जी महाराज हैं। उन्हीं के मार्गदर्शन से श्रीमती नीलमजी लुधियाना की कई सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं से जुड़ी थी । आपने महिला मंडल के मंत्रीपद पर रहते हुए अनेक धार्मिक शिविरों का संचालन किया एवं अध्यापन कार्य भी संपन्न किया । विपश्यना शिविर के माध्यम से ध्यान पद्धति में प्रवेश किया। महावीर की ध्यान पद्धति से • जुड़कर ध्यान शिविरों का संचालन किया, तथा सैंकड़ों साधकों को ध्यान साधना में कुशल बनाया। श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम ईडर में एकांत साधना के लिये आप लाभ लेने जाती हैं। इस प्रकार गहस्थ की जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए स्वाध्याय एवं ध्यान के मार्ग की ओर निरन्तर गतिशील हैं । १३६
७. १४४ श्रीमती कुमुद जैन :
आप चंडीगढ़ निवासी श्रीमान् राकेशजी जैन की धर्मपत्नी तथा अमतसर निवासी श्री जोगिंद्रपालजी एवं श्रीमती प्रकाशवती जैन की सुपुत्री हैं। आपकी दो पुत्रियाँ एवं एक पुत्र है। आपने भी श्री समुद्रसूरि जैन दर्शन शिविर के माध्यम से एवं श्री विजयजनक चंद्रसूरिजी की प्रेरणा से आध्यात्मिक जीवन प्रारंभ किया। महिला मंडल की मंत्रीपद पर रहते हुए स्वाध्याय कक्षाओं का संचालन किया । श्रीमद् राजचंद्र आश्रम ईडर में साधना का लाभ लेने पहुँचती है। ध्यान शिविरों में सक्रियता से भाग लेती हैं। इस प्रकार स्वाध्याय ध्यान की आपकी रूचि गहरी है। आपकी सुपुत्रियाँ भी इसी पथ पर आगे बढ़ रही हैं । ३७
७. १४५ श्रीमती भावना जी :
आप मारवाड़ (राजस्थान) निवासी श्रीमान् पारस भाई की धर्मपत्नी हैं। दोनों पति पत्नी जब अविवाहित थे तब दोनों ही विवाह बंधन में बंधने के इच्छुक नहीं थे। किंतु पारिवारिक खुशी के लिए आपने विवाह किया। विवाह के पश्चात् आप श्रीमद् राजचंद्र आगास आश्रम में आए, आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा ग्रहण की। आप निरन्तर स्वाध्याय - भक्ति में सर्वात्मना समर्पित होकर आश्रम में आध्यात्मिक जीवन व्यतीत कर रही हैं। भगवान् महावीर के सिद्धांतों को जीवन में यथार्थ परिपालन करने का प्रयास कर रही हैं । १३८
७. १४६ श्रीमती सुधा बहन :
आप निरंजन भाई की धर्मपत्नी हैं। आप व्यवसाय कार्यवश अमेरिका में रहते थे । श्रीमद् राजचंद्र आश्रम राजकोट में आजीवन ब्रह्मचर्य अंगीकार कर सर्वात्मा समर्पित हैं। स्वाध्याय ध्यान भक्ति में अपना आध्यात्मिक जीवन विकसित कर रही है । १३६ ७. १४७ श्रीमती सुशीलाबाई :
आप बैंगलोर निवासी श्रीमान् बंसीलाल जी धोका की धर्मपत्नी हैं। पूना निवासी श्रीमान् सुखलालजी एवं सरस्वती बाई की सुपुत्री तथा श्री हुक्मीचंद जी चोरड़िया (प्रवीण मसालेवाले) की बहन हैं। आपके ४ भाई एवं दो बहनें हैं। आपका एक पुत्र श्रीमान् कांतिलाल जी धोका तथा ६ पुत्रियाँ हैं जिनमें से दो पुत्रियों ने जैन भगवती दीक्षा अंगीकार की है। महासती श्री प्रगति श्री जी एवं
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