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________________ 662 आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान साथ-साथ अपना अध्ययन और शोध-कार्य भी चालू रखा। इस अवधि में आपने नार्थ वेस्टर्न विश्वविद्यालय, (अमेरिका) से एम. एस. तथा सन् १९७८ में जोधपुर विश्वविद्यालय से ही पैरेसाइटोलॉजी (परोपजीवी विज्ञान) में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। अगले वर्ष ही बंबई से इयूनोलॉजी (प्रतिरक्षण विज्ञान) का कोर्स किया। फिर तो अनेक विदेशी विश्वविद्यालयों ने आपको अनुसंधान के लिए शिक्षकवत्ति (फैलोशिप) प्रदान की। आपने पाँच अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंसों में जाकर पत्र पाठ किया तथा आपके लगभग ३६ शोधपरक लेख राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। जिन विश्वविद्यालयों ने आपको शिक्षा-वत्ति देकर सम्मानित किया उनमें मुख्य हैं कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड; एकेडेमी ऑफ साइंसेज़ प्राग, चैकेस्लोवाकिया (यूनेस्को शिक्षा वत्ति); इंडियाना स्टेट विश्वविद्यालय, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, यू.जी.सी.मैरिट रिसर्च फैलोशिप, वैलकुई फाउंडेशन फैलोशिप भी प्राप्त हुई। इन शिक्षावत्तियों से आपने जिन विषयों में अनुसंधान किया वे हैंन्यूट्रीशनल फीजियोलॉजी (पोषाहार शरीर-विज्ञान) टिश्शूकल्चर (ऊतकसंवर्धन) और इम्यूनो केमिस्ट्री (प्रतिरक्षण रसायन शास्त्र) आप इंडियन सोसाइटी आफ पैरासाइटोलॉजिस्ट्स ब्रिटिश सोसाइटी ऑफ पैरासाइटोलॉजिस्ट्स एवं सिपिना पग संयुक्त राष्ट्र अमेरिका जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं की सदस्या भी हैं। जाज्वल्यमान बौद्धिक उपलब्धियों के साथ आपके व्यक्तित्व का सांस्कृतिक पक्ष भी प्रबल है। भारतीय शास्त्रीय नत्य (कत्थक) में आप विशारद हैं। चित्रकला व पर्यटन में भी आपकी गहरी रुचि है। ऐसी प्रतिभाशाली महिला वास्तव में हमारे समाज का गौरव है ।११६ ७.१२४ नन्दुबाई लोढ़ा : आप पूना निवासी श्री घोंडीराम जी गुलाबचन्द जी खिंवसरा की सुपुत्री थी। आपका विवाह भुसावल निवासी श्री नयनसुखजी रामचन्दजी लोढ़ा से हुआ था। प्रथम महायुद्धके बाद ब्रिटिश शासन के खिलाफ देश में क्रांति की चिंगारियाँ सुलगने लगी, तो नन्दू बाई भी आन्दोलन में कूद पड़ी। वे शुद्ध खादी पहनने लगी। संवत् १९८४ में वे मालेगाँव में महाराष्ट्रीय जैन महिला परिषद की प्रमुख चुनी गई थी। संवत् १६८८ में प्रकाशित 'ओसवाल नवयुवक' के महिलांक के सफल सम्पादन का श्रेय नन्दू बाई को ही है। समाज सुधार के विभिन्न पहलुओं पर आपके प्रेरणास्पद लेख एवं कविताएँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपते रहते थे। आप की भाषा एवं शैली प्राजल थी। आपने अनेक कहानियाँ एवं गद्य गीत भी लिखे । ११७ ७.१२५ सुश्री हीराकुमारी बोथरा : साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र को जैन महिलाओं और विदुषी जैन साध्वियों ने अपने मौलिक अवदान से रसाप्लावित किया किन्तु शोध व समीक्षा के क्षेत्र पर पुरुषों का एकाधिकार रहा। यह घेरा लांघा ओसवाल समाज की महिला रत्न हीरा कुमारी बोथरा ने। मुर्शिदाबाद के बाबू उदयचन्द जी बोथरा बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। आपके पूर्वज जसरूपजी कोडमदेसर (बीकानेर) से संवत् १८३२ में मुर्शिदाबाद आकर बसे। इनके पुत्र दयाचन्द जी ने लाखों की सम्पत्ति अर्जित की, सिद्धाचल में सदाव्रत खुलवाया एवं ३२ भारी सोने के चरण अर्पित किए। इन्हीं के पत्र उदयचन्दजी थे। उनके पुत्र बुधसिंह जी भी बड़े मिलनसार व्यक्ति थे। संवत् १६६२ में उनके घर हीरा कुमारी का जन्म हुआ। पाणिग्रहण के कुछ ही समय बाद वैधव्य की कारा ने उन्हें घेरना चाहा। परन्तु साहसी एवं बुद्धिमती हीरा कुमारी ने समस्त बाधाओं को चिर कर ज्ञान मंदिर में अलख जगाई । प्रज्ञाचक्षु पण्डित सुखलालजी संघवी के निर्देशन में उन्होंने संस्कृत भाषा व साहित्य का अध्ययन किया। भाषा शास्त्र एवं दर्शन में निष्णात होकर व्याकरण-सांख्यवेदांत-तीर्थ की उपाधियाँ हासिल की। उन्हें जैन शास्त्रों से विशेष लगाव था। शास्त्र शोध एवं समीक्षा से उनका सबंध जीवनपर्यंत रहा। उन्होंने आचारांग सूत्र के श्रुतस्कंध का बंगला भाषा में अनुवाद कर समस्त विद्वत समाज को चमत्कृत कर दिया। उनके पास हस्तलिखित शास्त्रों का अलभ्य भंडार था जिसे उन्होंने प्राकृत जैन इन्स्टीट्यूट, वैशाली को भेंट कर दिया। संवत् १६८६ में जब ओसवाल महिला सम्मेलन का समायोजन हुआ तो समाज ने समुचित सम्मान कर हीरा कुमारी जी को उसकी सभानेत्री चुना । संवत् २०२५ में उनका देहावसान हुआ।११८ ७.१२६ डॉ. कमला देवी दूगड़ : संवत् १६६२ में इस महिला रत्न ने एक नया कीर्तिमान स्थापित कर ओसवाल समाज को गौरवान्वित किया। जयपुर की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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