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________________ 654 यह कृति हर आयु वर्ग एवं हर स्तर के व्यक्तियों के लिए सुबोधगम्य एवं प्रेरणास्पद है । १२ वीं १३ वीं शताब्दी ईस्वी के यशस्वी साहित्यकार महाकवि बूचराज की प्रसिद्ध मदनयुद्ध काव्य नामक कृति का सम्पादन एवं सफल अनुवाद भी डॉ० विद्यावती जैन ने किया है। आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान ७.१०६ श्रीमती सुशीला सिंघी : आधुनिक युग में सामाजिक क्रांति की मशाल थाम कर सामाजिक विकास के लिए सतत संघर्ष करने वाली ओसवाल महिलाओं में सुशीलाजी ने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की है। एक सामान्य परिवार में पिता- श्री अशर्फीलाल जैन के वात्सल्य तले पली चौदह वर्षीय कन्या के अन्तर में क्रान्ति की इस छुपी चिंगारी को महात्मा गांधी ने पहचाना एवं उनकी प्रेरणा पाकर यह बालिका सदैव के लिए सामाजिक उन्नयन के लिए समर्पित हो गई। किशोरअवस्था आते आते बाल विधवा हो जाने की नियति को निज के पुरुषार्थ से उन्होंने बदल कर रख दिया। सामाजिक क्रांति के सूत्रधार श्री भंवरमलजी ने सन् १६४६ में उनको अपनी सहधर्मिणी बना कर सामाजिक चेतना के नये युग का सूत्रपात किया । सन् १६५२ में पर्दा एवं दहेज विरोधी अभियानों में वे सदा अग्रणी रही । मारवाड़ी सम्मेलन के मंच से सामाजिक सुधारों के लिए सदैव संघर्षरत रहते हुए, कलकत्ता यूनिवर्सिटी से उन्होंने एम. ए. किया । राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ कर कांग्रेस के अधिवेशनों को सम्बोधित किया । सन् १६५८ से १६७२ तक अखिल भारतवर्षीय परिवार नियोजन कौंसिल एवं कलकत्ता की महिला सेवा समिती की मानद मंत्री रही। उनका कार्यक्षेत्र मारवाड़ी समाज या कलकत्ता तक ही सीमित नहीं रहा अपितु पुरुलिया के आदिवासी अंचलों, कोयलाखानों, चाय बागानों एवं कलकत्ता के स्लम क्षेत्रों के मजदूर पारिवारों के शैक्षणिक एवं सामाजिक विकास के लिए सुशीला जी सर्वदा सेवारत रही। सन १६६८ में उन्होंने 'परिवारिकी' की स्थापना की, जहाँ २ वर्ष से १६ वर्ष की उम्र के दरिद्र परिवारों के सैंकड़ों बच्चों के समुचित विकास की अपूर्व व्यवस्था है। पश्चिम बंगाल की सरकार ने उन्हें जस्टिस ऑफ पीस (१६६३.७३) मनोनीत कर सम्मानित किया। सन् १६८५ में कलकत्ता के 'लेडीज स्टडी ग्रुप' द्वारा वे सर्वप्रमुख सामाजिक कार्यकर्त्री एवं सन् १६८७ में बम्बई के 'राजस्थान वेलफेयर एसोशियेशन' द्वारा 'सर्व प्रमुख महिला कार्यकर्त्री' चुनी गई। सम्प्रति वे महात्मा गांधी द्वारा स्थापित 'कस्तूरबा गांधी स्मारक निधि' की ट्रस्टी हैं। समाज सेवा के अतिरिक्त अनेक शैक्षणिक एवं कला संस्थानों को उनका निर्देशन उपलब्ध है। अनामिका, संगीत कला मन्दिर, अनामिका कला संगम, शिक्षायतन, यूनिवर्सिटी, महिला एसोसियेशन, महिला समन्वय समिति, गांधी स्मारक निधि, मारवाड़ी बालिका विद्यालय, आदि अनेक संस्थाएँ सुशीला जी की सेवाओं से लाभान्वित हुई हैं। ओसवाल समाज इस नारी रत्न से सदैव गौरवान्वित रहेगा। ७. १०७ सुश्री मल्लिका साराभाई : भारतीय संस्कृति के विभिन्न आयामों को विश्व फलक पर सफलता पूर्वक रूपायित करने वाली कला जगत की विश्व विख्यात तारिका हैं मल्लिका साराभाई । आप विश्व विख्यात अणु-वैज्ञनिक डा. विक्रम साराभाई एवं विश्व विख्यात नृत्यांगना मणालिनी साराभाई की सुपुत्री हैं। कॉलेजीय शिक्षा के उपरान्त आपने मेनेजमेंट कोर्स में डॉक्टरेट हासिल की ताकि पैत्रिक साराभाई उद्योग को दिशा दे सकें । अभिनय का शौक आपको फिल्मों में भी ले गया । किन्तु न तो उद्योग की लिप्सा ही उन्हें पकड़े रख सकी, न बम्बई का फिल्मी माहौल ही उन्हें रास आया। मल्लिका जी की कलात्मक रुचि और रचनाधर्मिता उन्हें नत्य शास्त्र की ओर खींच गई और वे नृत्य की पारम्परिक विधा से जुड़ गई। अपनी कृतियों में तलाशे नये-नये प्रयोगों से उसकी अभिव्यक्ति होती रही। नारी शक्ति की अभिव्यन्जना में मल्लिका जी ने पारम्परिक शैली के साथ बैले कोरियाग्राफी, माईन, प्रस्तर भंगिमा, संवाद आदि के सफल मिश्रण से सशक्त प्रभाव उत्पन्न कर दर्शकों को अचम्भित कर दिया। कला समीक्षकों ने उनके प्रदर्शनों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने आधुनिक भारत में नारी शोषण एवं नारी पर होने वाले अत्याचार की घटनाओं को नत्य नाट्य द्वारा इतने मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया कि वे विद्रोह की प्रतीक बन गई। श्री और शक्ति' श्रंखला में "केरला - ४" (पालघाट में आत्मघात करने वाली चार बहनों की गाथा) में सामाजिक शोषण के खिलाफ स्वर इतना बुलन्द था कि वह दर्शकों को हिला गया। इसी तरह "चिपको आन्दोलन' से सम्बंधित नाट्य मंचन भी बड़ा प्रभावशाली था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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