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पूर्व पीठिका
इसी प्रकार तपागच्छ ताड़पत्रीय हस्तलिखित ग्रंथ भंडार एवं लोंकागच्छ, आचार्यगच्छ ताड़पत्रीय हस्तलिखित ग्रंथ भंडार की हस्तलिखित प्रतियों में भी श्राविकाओं के ऐतिहासिक नामों का उल्लेख प्राप्त होता है।
पी०सी० जैन संपादित भट्टारकीय ग्रंथ भंडार, नागौर के हस्तलिखित ग्रंथ भंडार की हस्तलिखित प्रतियों में श्राविकाओं के जीवन पर लिखे गये चरित्र का उल्लेख हुआ है। इसी प्रकार श्राविकाओं पर चौपाई, रास, टीका, प्रबंध, गाथायें, आदि का उल्लेख पंजाब में जैन साहित्य रचना, उत्तर प्रदेश और जैन धर्म, बृहद् (बड़) गच्छीय कवि मुनिमाल (यति) की रचनाएं, श्रावक कवि खुशीराम दुग्गड़ की रचनाएं आदि अनेक ग्रंथों में प्राप्त होता है। राजस्थान हिन्दी हस्तलिखित ग्रंथसूची भाग ३ में रानियों द्वारा हस्तलिखित स्तवन की पत्री, बाई वीरो श्राविका पठनार्थ अंजना सुन्दरी रास आदि का वर्णन प्राप्त होता है। कन्नड़ ताड़पत्रीय ग्रंथ सूची में भी श्राविका के लिये लिखी गई ग्रंथ, टीका आदि का वर्णन उपलब्ध होता है।
श्रीमान मोहनलाल दलीचंद देसाई कृत जैन गुर्जर कविओं में (जिनके १ से लेकर ६ भाग है) उन श्राविकाओं का वर्णन है, जिन्होंने स्तवन, सज्झाय, चौपाई, गीत, रास आदि साहित्य लिखवाकर पुण्यशीला, स्वाध्यायशीला श्राविकाओं के पठनार्थ समर्पित किया है। जैन गुर्जर कविओं में श्राविकाओं पर लिखी गई कतियां, रास, चौपाई कथा, प्रबंध आदि उल्लेखनीय हैं जो विभिन्न कवियों द्वारा लिखित हैं। जैन गुर्जर कविओं भाग १ से ६ (नवीन संस्करण) में ही श्राविकाओं ने अपने स्वाध्याय एवं पठन हेतु जिन ग्रंथों का प्रणयन करवाया, उन हस्तलिखित प्रतियों का उल्लेख भी किया गया है। ___जैन समाज के प्राचीन ग्रंथ भंडारों में, संग्रहों में सैंकड़ों वर्षों पहले हाथ से लिखवाये गये सैंकड़ों ग्रंथ आज भी दृष्टिगोचर होते हैं। इनमें सुशील जैन महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान है। उन शीलवती श्राविकाओं ने अपनी संपत्ति ज्ञान आराधना की भावना
और उत्साह भरी प्रेरणा से जैन सिद्धांत एवं सूत्रादि विविध साहित्य की ताड़पत्रादि पुस्तिकायें लिखवाई हैं। योग्य विद्वान् एवं व्याख्याता मुनियों को अर्पण की है तथा ज्ञान भंडारों में रखवाई है। जैनाचार्यों के सदुपदेश उनमें निमित्त भूत बने हैं। उसमें उनका अपना तथा रचना आदि में भी अनेक महत्तराओं, आर्याओं, प्रवर्तिनीयों, गणिनीयों, व श्रमणिओं का भी प्रशंसनीय परिश्रम दिखाई देता है। सौराष्ट्र, गुजरात, मारवाड़, मेवाड़, दक्षिण आदि विविध देशों की श्रीमाल, पोरवाड़, ओसवाल, धर्कट, दिशावाल, अग्रवाल, मोढ़, हुंबड़, आदि विविध वणिक वंश-ज्ञातिओं की, क्षत्रिय तथा अन्य उच्चकुलीन राज्याधिकारिओं के परिवार की महिलाओं का महत्वपूर्ण स्थान है जिन्होंने ज्ञानाराधना के लिए, आत्म कल्याण के लिए तथा माता-पिता, पति-पुत्र एवं स्वजनों आदि के कल्याण के लिये अनेक पुस्तिकायें लिखवाई। पठन पाठन तथा व्याख्यान आदि के सदुपयोग के लिए उस समय के सुयोग्य विद्वान् जैनाचार्य आदि को भक्ति से समर्पित की और भविष्य की पीढ़ी के लिए जैन संघ के सुरक्षित ज्ञानभंडारों में संग्रहित करवाई थी। इन महिलाओं ने पुण्य से प्राप्त चंचल लक्ष्मी को विवेक पूर्वक पुण्य कार्यों में विनियोग करके सफल किया था।
जैन मन्दिरों, देवकुलिकाओं, जैन मूर्ति प्रतिमाओं की तरफ देखने पर उनकी प्रशस्तियों, शिलालेखों, प्रतिमालेखों की सावधानी से खोज की जाएं तो जैन श्राविकाओं के अनेक सत्कार्यों के इतिहास की जानकारी का हमें बोध होता है।
१.२२ प्रस्तुत शोध का सीमा क्षेत्र :
हमारा प्रस्तुत शोध प्रबंध श्राविका वर्ग तक सीमित है। श्राविका शब्द के हमने दो विभाग किये हैं, श्रद्धाशील एवं व्रतसंपन्न श्राविकायें।
१.२३ श्रद्धासंपन्न श्राविकायें :
देव, गुरु, धर्म के प्रति, श्रद्धाशील, श्रमण-श्रमणियों से प्रवचन श्रवण, गुरु चरण उपासना, धार्मिक पुस्तकों का पठन पाठन, मूर्ति निर्माण एवं साहित्यिक ग्रंथों की हस्तलिखित प्रतिलिपियों के निर्माण में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। सामाजिक राजनीतिक, सेवा, परस्पर उपकार तथा सद्भावना के क्षेत्र में इनका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है।
१.२४ व्रतसंपन्न श्राविकायें :
जैन साहित्य में गृहस्थ श्राविकाओं के आचार के लिए बारह व्रतों का प्ररूपण किया गया है। व्रतसंपन्न श्राविकायें वे हैं जो इनमे से एक या बारह ही व्रतों को धारण करने वाली हैं। व्रत आराधना के साथ ही अनेक प्रकार की तपस्यायें, जाप, संथारा आदि
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