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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास । 943 क्र० संवत् श्राविका नाम वंश/गोत्र | प्रेरक/प्रतिष्ठापक प्रतिमा निर्माण | संदर्भ ग्रंथ गच्छ / आचार्य | आदि 940 1591 पीनलदे, दीवी श्री श्री | मुनिचंद्रसूरि पूर्णिमा भ. श्री शांतिनाथ जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. 941 1596 | जइती उकेष ज्ञा. | विजयदानसूरि तपा. भ. श्री श्रेयांसनाथ जी दि.जै.इ.इ.आ.अ. 942 1596 | पुहती, वीरादे, श्रीबाई प्रा. ज्ञा. | विजयदानसूरि तपा. भ. श्री पार्श्वनाथ जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. 1596 | अमरादे प्रा. ज्ञा. सोमसुंदरसूरि तपा. भ. श्री अभिनंदन जी दि.जै.इ.इ.आ.अ. 944 1596 | अमरादे. हेमादे प्रा. ज्ञा. | विद्यांचद्रसूरि, साधुपूर्णिमा | भ. श्री अरनाथ जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. 945 11599 | वना, रत्नादे प्रा. ज्ञा. | श्रीसूरि | भ. श्री आदिनाथ जी दि.जै.इ.इ.आ.अ. 946 1600 षोमी, बनाई, नावछ अंचल. गुणनिधानसूरि भ. श्री पार्श्वनाथ जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. 947 1605 | अमरी श्री श्री विजयदानसूरि | भ. श्री सुमतिनाथ जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. | 1610 | मानू, कमलादे, लीलादे प्रा. ज्ञा. | विजयदानसूरि | भ. श्री संभवनाथ जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. 949 1614 | अछबादे, लीलादे विजयसूरि तपा. भ. श्री चंद्रप्रभु जी दि.जै.इ.इ.आ.अ. 950 | 1815 | कंकू, बाई, दीवी, नानी । विजयदानसूरि | भ. श्री वासुपूज्य जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. 951 1619 रत्नादे, जालणदे विजयसूरि तपा. | भ. श्री धर्मनाथ जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. 1620 मुरारि धर्ममुनिसूरि अंचल | भ. श्री सुमतिनाथ जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. 953 | 1623 | रत्नादे श्रीमाल हीरविजयसूरि भ. श्री पार्श्वनाथ जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. 1623 भामा, रत्नादे श्रीमाल हीरविजयसूरि तपा | भ. श्री सुमतिनाथ जी दि.जै.इ.इ.आ.अ. 9551627 | रजाई, कोडिमदे, सूरमदे । उकेषवंष जिनसिंहसूरि वृद्धतपा. भ. श्री पार्श्वनाथ जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. गोदहीया गोत्र 956 | 1628 | षीमाई, तेजलदे, हीरविजयसूरि | भ. श्री सुविधिनाथ जी | दि.जै.इ.इ.आ.अ. 957 | 1597 | कर्मी, देवलदे सोभागिणि उकेष वंष भ. श्री आदिनाथ जी | म.दि.जै.ति. आदिलीया गोत्र श्री श्री 954 958 1618लंगी ओ. ज्ञा. 959 श्री विजयदानसूरि तपा. हरिविजयसूरि हरिविजयसूरि हेमविजय लिखित भ. श्री कुंथुनाथ जी म.दि.जै.ति. भ. श्री शीतलनाथ जी | म.दि.जै.ति. भ. श्री अभिनंदन जी म.दि.जै.ति. | 1626 | त्रवा, पूनी 960 16101 बुधी, बगाई 961 1725 | अखु हस्तु खुस्थाला वाचनार्थ 962 | 1738 | राजकुंयरि वाचनार्थ प्रा. ज्ञा. जै. गु. क. भा. 4 | 88 जिनप्रतिमादृढकरण हंडी रास कनसेन लिखित रतनपारस 3 खंड 34 | जै. गु. क. भा. 4 | 462 ढाल 963 1487 | वाल्हादेवी चम्म आ. जिनचंद्रसूरि ख. इ. प्र. ख. 179 शासन प्रभावक आचार्य जिनशासन | को समर्पित किया 964 1141 | बाहडदेवी युग. प्र. जिनदत्तसूरि ख. इ. प्र. ख. 179 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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