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सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ
क्र०
| संवत् | श्राविका नाम
वंश/गोत्र
संदर्भ ग्रंथ
प्रेरक/प्रतिष्ठापक | प्रतिमा निर्माण गच्छ/आचार्य
आदि तपा. जयसागरगणि आदिनाथ
2462 | 1681 |
| जसमादे, सुहागदेवी | मुहणोत
स्वर्ण जा.
2463
1681
तपा. जयसागरगणि
महावीर
स्वर्ण जा.
2464
1681
जसमादे, राजलदे, | कोठारी दाढिमदे, लाडिमदे जयवंतदे, मनोरथदे | मुहणोत,उसवाल सरूपदे, सोहागदे मनरंगदे
पामेचा
तपा. जयसागरगणि
| महावीर
स्वर्ण जा.
2465
सुविधिनाथ
स्वर्ण जा.
2466
| जसमादे, सोहागदे
मुहणोत
आदिनाथ
स्वर्ण जा.
2467
16वीं | केलूई शती
पहाडिया गोत्र
कुमार चरिउ
| ख.जै.स.बृ.इ.
104
2468
लाडा
मुनिधर्मचन्द को भेंट
पासणाह चरिउ | ख.ज.स.बृ.इ.
104
16वीं षती
2469
| 1612 | तीलहू
सोनी गोत्र
नवकार श्रावकाचार
आर्या विजयश्री को भेंट
ख.जै.स.बृ.इ.
109
2470
1816 | सरूपा
| ब्रह्म साहू तरुइराज
महावीर
ओस. ज्ञा. चोपडा गोत्र
बी.जै.ले.सं.
3
2471
1835 | रतनबाई
रेंटीमानी सज्झाय | ऐ.ले.सं
341
पांडव पुराण भेंट की थी | आ. हेमचंद्र को
| ख.जै.स.बृ.इ.
109
| 1636 | लाडमदे, हरदमदे,
षोडषारणव्रत
उद्यापनार्थ | 1637 | स्वरुपदे
2473
गोधा गोत्र
पंचस्तिकाय प्राभृत
ख.जै.स.बृ.इ.
128
2474
| 1653 | पांची
| ऐ.ले.सं.
165
|पं विजयसेनसूरी द्वारा | हीरविजयसूरी
की प्रतिमा नदी वर की धातु मूर्ति
2475
| 1660 | ठाकुरी, रूकमी
बैनाडा गोलीय
ख.जै.स.बृ.इ.
136
2476
1667
युग श्रीजिनचंद्रसूरी
पार्श्वनाथ
युग.प्र.श्री.जि.
250
| अमोलिकद, लखमादे | ओ.फसला गोत्र
लाछलदे | चांपा पठनार्थ
2477
| 1682
पं कीर्ति विमलगणि लिखित
बारहव्रत जोडी । ऐ.ले.सं.
341
24781690 | तेज श्री
सहस्त्रकूट चैत्यालय का निर्माण
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ख.जै.स.बृ.इ.
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