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________________ 470 सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ क्र० संवत् श्राविका नाम वंश/गोत्र । प्रेरक/प्रतिष्ठापक गच्छ/आचार्य आगम. सोमरत्नसूरि 1836 1549 | अमकू माहलणदे श्री. श्री । प्रतिमा निर्माण संदर्भ ग्रंथ आदि | भ. श्री पार्श्वनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. जी भ. श्री अजितनाथ दि.जै.इ.इ.अ. जी | भ. श्री विमलनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. 1837 | 1549 | चांदु, हर्षाई । उपकेष. ज्ञा बृहद्. पुण्यप्रभुसूरि 1838 1549 | सोही, रमाई श्री. श्रीमाल पूर्णिमा. मुनिचंद्रसूरि 18391549 | जाकु, लाड़कि श्री. श्रीमाल पूर्णिमा. मुनिचंद्रसूरि | भ. श्री शीतलनाथ दि.जै.इ.इ.अ. जी भ. श्री श्रेयांसनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. 1840 1549 | सोही, धर्माई | श्री. श्रीमाल पूर्णिमा. मुनिचंद्रसूरि जी 18411549 | फदी, पुहति श्री. श्रीमाल पूर्णिमा. मुनिचंद्रसूरि भ. श्री सुमतिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. जी | भ. श्री धर्मनाथ जी दि.जै.इ.इ.अ. 1842 | 1549 | मिहसू, रूडी । श्री. श्रीमाल आगम, मुनिरत्नसूरि 1843 1549 | जेठी, सोनाई ऊकेष. वंष | खरतर. जिनहर्षसूरि | भ. श्री सुमतिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. जी | भ. श्री श्रेयांसनाथ| दि.जै.इ.इ.अ. 18441549 | सांतू, नायकदे उसवाल. ज्ञा पूर्णिमा. मुनिचंद्रसूरि जी 18451549 | लक्ष्मी, वीरू, रमादे श्री. श्री सुविहितसूरि भ. श्री नेमिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. जी 1846 1549 | लाडा, लतादे, वालु | श्री. श्री शांतिसूरि भ. श्री अजितनाथ दि.जै.इ.इ.अ. 1847 1551वांनू, पांचू, कुंअरी प्रा. ज्ञा तपा. हेमविमलसूरी | भ. श्री संभवनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. 1848 उस. ज्ञा तपा. हेमविमलसूरी भ. श्री पार्श्वनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. 11552 | वल्ही, हंसाई, लालीई, सरूपदे 1552 | वइजलादे, गंगादे 1849 उस, ज्ञा श्रीसूरि भ. श्री चंद्रप्रभु जी दि.जै.इ.इ.अ. 18501553 | अमकू लसमाई श्री. श्री साधू पूर्णिमा. चंद्रसूरि 1851 1553 पूरी तपा. इंद्रनंदिसूरि | भ. श्री सुमतिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. | जी भ. श्री नेमिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. | जी | भ. श्री मुनिसुव्रत | दि.जै.इ.इ.अ. 18521553 मनी, नाथी प्रा. ज्ञा तपा. इद्रनंदिसूरि 1 1853 | 1553 माणिकदे प्रा. ज्ञा आगम. मुनिरत्नसूरि भ. श्री धर्मनाथ जी दि.जै.इ.इ.अ. 1854 1553 | कीकी आणुयरि श्री. ज्ञा वृद्धतपा. उदयसागरसूरि | भ. श्री वासुपूज्य | दि.जै.इ.इ.अ. 1855 | 1553 | ललितादे, रगू उस. वंष वृद्धतपा. उदयसागरसूरि | भ. श्री सुमतिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. जी 1856 1553 | रत्नाई, मल्हाई, नाथी | श्री. श्री वृद्धतपा. उदयसागरसूरि भ. श्री श्रेयांसनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. जी वृद्धतपा. उदयसागरसूरि | भ. श्री विमलनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. 1857 1554 | मनकू अमरादे श्री. श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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