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सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ
क्र०
संवत् । श्राविका नाम
वंश/गोत्र
प्रेरक/प्रतिष्ठापक | प्रतिमा निर्माण संदर्भ ग्रंथ गच्छ/आचार्य
आदि पूर्णिमा. साधुसुंदरसूरि भ. श्री विमलनाथ दि.जै.इ.इ.अ.
16611524 | कीछी
श्री. श्री
जी
1662
| 1524 | अरघू, भूरी
श्री. श्री. ज्ञा.
पूर्णिमा. राजतिलकसूरि | भ. श्री पार्श्वनाथ | दि.जै.इ.इ.अ.
1663
|1524 | नाणू, वरजू
श्री. श्री. ज्ञा.
कारट. सावदेवसूरि
भ. श्री विमलनाथ दि.जै.इ.इ.अ.
जी
| 1664
|1524 | पांती, जसमादे, वीकू | श्री. श्री. ज्ञा.
कारट. सावदेवसूरि
भ. श्री आदिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ.
जी
1665
1524 | पूनादे
श्री. श्री. ज्ञा.
आगम. अमररत्नसूरि
भ. श्री अभिनंदन | दि.जै.इ.इ.अ. जी भ. श्री धर्मनाथ जी दि.जै.इ.इ.अ...
1666
1525
वाछु डाही
प्रा. ज्ञा
तपा. लक्ष्मीसागरसूरि
1667
| 1525 | अधकू चंपाई
प्रा. ज्ञा
तपा. लक्ष्मीसागरसूरि
भ. श्री चंद्रप्रभु जी| दि.जै.इ.इ.अ.
1668
1525 | ह', डाही
तपा. लक्ष्मीसागरसूरि
| भ. श्री अभिनंदन
दि.जै.इ.इ.अ.
जी
1669
1525 | हांसलदे, वाल्ही
श्री. श्री. वंश
अंचल जयकेसरीसूरि
भ. श्री कुंथुनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. जी भ. श्री कुंथुनाथ | दि.जै.इ.इ.अ.
1670
|1525 | मेयू, रमादे
श्रीसूरि
जी
16711525 | हीराई
श्री. ज्ञा
पूर्णिमा. साधुरत्नसूरि.
| भ. श्री श्रेयांसनाथ | दि.जै.इ.इ.अ.
जी | भ. श्री वासुपूज्य | दि.जै.इ.इ.अ.
16721525 | उमादे, मांई
श्री. श्री
| पूर्णिमा. गुणधीरसूरि.
16731525 | माणिकदे, भावलदे
अंचल तयकेसरीसूरि.
भ. श्री आदिनाथ दि.जै.इ.इ.अ. जी भ. श्री कुंथुनाथ | दि.जै.इ.इ.अ.
1674
| 1525 | नाकुं, लाछी
उपकेश. ज्ञा
| सर्वसूरि
1675
1525
लषमणि
सुराणागोत्र
धर्मधोष पद्मानंदसूरि.
भ. श्री शीतलनाथ| दि.जै.इ.इ.अ.
1676
1525 | धांधलदे
श्री. श्री
| नागेंद्र गुणदेवसूरि
भ. श्री धर्मनाथ जी दि.जै.इ.इ.अ.
1677
1525 | माणिकदे, तेजू
उसवाल. ज्ञा
| तपा विजयदत्तसूरि
भ. श्री पार्श्वनाथ
दि.जै.इ.इ.अ.
जी
1678
| 1525
हीरू, कुतिगदे
प्रा. ज्ञा.
तपा लक्ष्मीसागरसूरि
| भ. श्री मुनिसुव्रत | दि.जै.इ.इ.अ.
जी भ. श्री संभवनाथ | दि.जै.इ.इ.अ.
1679
1525 | वाछु अबू
प्रा. ज्ञा.
उकेश सिंहसूरि
1680
1525 | हषू, गाऊ
प्रा. ज्ञा.
तपा लक्ष्मीसागरसूरि
| भ. श्री वासुपूज्य | दि.जै.इ.इ.अ.
1681
1525 | वानू, अमकु, डाही
|
उकेश. ज्ञा.
तपा लक्ष्मीसागरसूरि
भ. श्री नेमिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ.
जी
1682
1525 | वरजू, राजू, रमाई
प्रा. ज्ञा.
तपा लक्ष्मीसागरसूरि
| भ. श्री श्रेयांसनाथ| दि.जै.इ.इ.अ.
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