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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास क्र० संवत् | श्राविका नाम प्रतिमा निर्माण आदि संदर्भ ग्रंथ वंश/गोत्र प्रेरक/प्रतिष्ठापक गच्छ /आचार्य ओस. ज्ञा. गांधी | मलधारिगुणसुंदरसूरि 492 1521 | चांपासिरि, सीतादे भ. श्री धर्मनाथ जी जै.धा.प्र.ले.सं. 184 गोत्र 493 1593 खंडेलवाल अजमेरा | विनयसिरि को प्रदान गोत्र किया 170 भ. श्री वर्द्धमान चरित्र जी | श्री. प्र. स. | तोला, चोखी, नेमीआदि ने लिखवाया | गउरी 494 भ. श्री कल्पसूत्र जी | श्री. प्र. स. 495 1543 मोढ़ ज्ञा. काली, रत्ना ने लिखवाई अजू पठनार्थ भ. श्री विपाकसूत्र | श्री. प्र. स. जी विजयराजमुनि ने लिखी | श्री उपदेशमाला सूत्र | श्री. प्र. स. 496 |1595 497 1556 498 1546 गेली पठनार्थ प्रवर्तिनी सौभाग्य आवश्यक नियुक्ति श्री. प्र. स. लक्ष्मीगणि ने लिखा ग्रंथ कर्णदेवी, मंत्री भुवनपाल की | जिन चंद्राख्यसूरि की श्री कल्पसूत्रम् श्री. प्र. स. लैगमदेवी ने | पत्नी एवं परिवार | प्ररेणा से परिवार सहित लिखवाया कर्मादे ने प्रा.ज्ञा. श्री प्रवचन सारोद्धार | श्री. प्र. स. स्वश्रेयार्थ अपने सूत्र हाथों से लिखा हैं उदयलक्ष्मी ने श्री ऋषि डूंगर श्रीपाल ने | श्री तंदुलवैयालीय | श्री. प्र. स. स्वहस्तेन लिखवाया सूत्रम स्वपठनार्थ लिखा 4991516 500 1584 501 1514 जै.धा.प्र.ले.सभा.2 | 18 502 1543 |जै.धा.प्र.ले.स.भा.2 | 44 503 1597 जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 504 |1509 जै.धा.प्र.ले.सभा.2 रूपिणि ने माता | प्रा.ज्ञा. तपा. विजयसमुद्रगणि को | श्री कल्पसूत्रम् देमति श्रेयार्थ प्रदान किया लिखा तेजू, काली | मोढ़ ज्ञा. गणि चरित्रसागर के श्री विपाकसूत्रम् पठनार्थ | भावलदे, सोनलदे, | ऊकेश वंश श्री रंगतिलकगणि श्री सिरियादे पामेचागोत्र लिखित (अंचलगच्छ) उपासकदशांगसूत्र श्रृंगारदेवी, सोनाई | श्रीमालवंश जिनभद्रसूरि (प्रेरका श्री कल्पसूत्र आदि ने परिवार खरतर) सहित प्रकाशित करवाया अग्रोत गर्ग गोत्र | पं. हीगाय को समर्पित | पद्मपुराण प्यारी आदि ने किया लाडी, गुणसिरि | खंडेलवाल पहाड्या | पठनार्थ प्रदान किया । कर्मप्रकृति ने पुत्र सहित गोत्र लिखवाया रूपा, चौसिरि, खंडेलवाल मुनि श्री धर्मचंद्र को षट्पाहुड टीका दानसिरि आदि ने | वाकलीवाल गोत्र प्रदान किया। रोहिणी व्रत उद्यापनार्थ 505 1551 जै.धा.प्र.ले.सं.भा.2 119 506 1577 जै.धा.प्र.ले.संभा.2 | 96 507 1585 जै.धा.प्र.ले.सं.भा. 2 174 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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