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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास क्र० संवत् वंश/गोत्र अवदान संदर्भ ग्रंथ प्रेरक/प्रतिष्ठापक गच्छ / आचार्य सोमसुंदरसूरि 1278/1491 लूणादे कष्मीरदे प्राग्वादज्ञातीय मुनिसुव्रत पा.ले.धा.प्र.सं. 1279 | 1491 | वुलदे, मटकू जीवंतस्वामी पा.ले.धा.प्र.सं. श्री मालगोत्री | चैत्रगच्छ श्री जिनदेवसूरि आदिनाथ प्राग्वाटवंष श्री सूरि 1280 | 1491 | गांगी, हरखू मरगादे सुमतिनाथ पा.ले.धा.प्र.सं. 1281 | 1491 | कामलदे, माकू श्रीमाल वंष तपागच्छ श्री सोमसुंदरसूरि धर्मनाथ पा.ले.धा.प्र.सं. 1282 | 1422 | वीझलदे, कपूरी प्राग्वाट् तपागच्छ श्री सोमसुंदरसूरि आदिनाथ पा.ले.धा.प्र.सं. 1283 | 1492 | वानू प्राग्वाट्ज्ञातीय | वृद्धतपागच्छ श्री रत्न सिंह मुनिसुव्रत पा.ले.धा.प्र.सं. 1284/1492 | पोमी श्री श्रीमाल ज्ञा. | नागेंद्रगच्छ श्री गुणसमुद्रसूरि पा.ले.धा.प्र.सं. 35 सुविधिनाथ पंचतीर्थी | धर्मनाथ 1285] 1492 लूणादे प्राग्वादज्ञातीय पा.ले.धा.प्र.सं. 1288 | 1493 | झाझू श्रीमाल ज्ञा. तपागच्छनायक प्रभु श्री सोमसुंदरसूरि पूर्णिमागच्छ भ. श्री जय | प्रभसूरि पूणिमापक्ष श्री सूरि श्रेयांसनाथ पा.ले.धा.प्र.सं. 1287|1493 सहिजनदे, बदू श्रीमाल ज्ञा. कुंथुनाथ पा.ले.धा.प्र.सं. नारी गुणों की गौरव गाथा। धरती के जन-जन गाएँगे। और तो सब कुछ भूल सकेंगे। तुमको भुला ना पाएँगे। नारी तुम गंगा सी पावन महान। तुम गीता सी गौरव निधान। तुम सेवा की साकार देवी। और सीता सी करूणा निधान। नारी तुम केवल श्रद्धा हो। विश्वास रजत नभ पग-तल में। पीयूष स्त्रोत सी बहा करो। जीवन के सुंदर समतल में। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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