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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
क्र. संवत् श्राविका नाम
२४० १४६१
२४१
२४२
२४३
२४४
"
२४५ 855
१४६६
२४७ सन् १४५६
२५०
१४६२ आल्हणदे, चाहणदे
१४६५ चापलदे, लषमादे
२४८ सन् १४६०
२५१
२४६ सन् १४०५
२५३
१४७६
9889
२५२ १४५५
पूनादे, हीरादे
२४६ सन् १४१७ कालि-गौण्डि अपप्य गौड़ की पत्नि
थी.
लीलादे
१४६७
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सोहग
घस्थति
भागीरथी
भामिनी
शांतलदेवी
उदौसिरि, सरो, जोल्हा ने लिखवाया
कमलाइ, भोली, मारूचा ने लिखवाया
२५४ सन् १३६२ पटरानी वर्द्धमानक्क
मील पुत्री पूजी
ने लिखवाया
चांपलदेवी, आल्ह ने लिखवाया
वंश / गोत्र
ओसवाल वंश
प्रा. ज्ञा.
बु
हुंबड़. ज्ञा.
वायड़ ज्ञा.
उसके पति चेन्नराज थे ।
प्रेरक / प्रतिष्ठापक आचार्य / गच्छ
खरतर जिनसागरसूरि
सोमसुंदरसूरि
धर्मघोष विजयचंद्रसूरि
श्री सूरि
हेमरत्नसूर
सेन सिद्धांती देव
अकलंक
बोम्मणसेट्टि की पुत्री थी.
मंगराज नरेश के पुत्र वण्णरस पति थे।
जयानंदसूर
देवसुंदर गुरू की प्रेरणा
अवदान
बुल्लप्प एवं मल्लब्बे की जैनविधि पूर्वक मत्यु पुत्री थी
का स्मारक है।
श्री मेघनाद ने लिखी
भैरव अरस की पटरानी थी
श्री सुमतिनाथ
श्री अजितनाथ
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श्री नमिनाथ
श्री शांतिनाथ
श्री वासुपूज्य
श्री शीतलनाथ
समाधि-विधि के द्वारा मत्यु को प्राप्त किया था ।
पं. अग्रोत रामचंद्र ने लिखा षट्कर्मोपदेशरत्नमाला, बाई
विमलश्री को अर्पित की
संलेखना द्वारा मृत्यु हुई थी।
समाधिमरण किया
था।
श्री प्रश्नोत्तररत्नमाला क्त
श्री पंचांगीसूत्रवत्ति
| श्री सूक्ष्मार्थविचारसार प्रकरण चूर्णि
उत्तरपुराण
संदर्भ ग्रंथ
वही.
वही.
वही.
नही.
वही.
बी. जै. ले. सं.
जै. शि. सं. भा. ३
जै. शि. संभा. ३
जै. सि. भा. ७३
जै. सि. भा.
श्री. प्र. सं.
श्री. प्र. सं.
श्री. प्र. सं.
श्री. सं.
क. प्रां. ता. ग्रं. सू.
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