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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
नारियाँ निर्लिप्त भाव से प्रचार-प्रसार किये बिना, स्व पर कल्याण के लिए अग्रसर रहीं हैं। ऐसी विषम परिस्थिति में नारियों का इतिहास लेखन करना, दुरूह और दुष्कर कार्य है। अलग-अलग ग्रन्थों में, पन्नों में, मूर्ति व शिलालेखों में बिखरे साक्ष्यों को लिपिबद्ध कर क्रम से प्रस्तुत करना यद्यपि कठिन है लेकिन ऐतिहासिक ग्रन्थ में तथ्यों का पूर्ण प्रामाणिकता से आकलन करना भी जरूरी है। सन्दर्भ ग्रन्थों के अभाव में कार्य सम्पन्न करना कठिन होता है तथापि साध्वी प्रतिभा श्री जी ने ज्ञात-अज्ञात स्रोतों के आधार पर अधिकांश प्रमुख-प्रमुख नारियों के व्यक्तित्व और कृतित्व का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है, जो अद्यावधि नहीं हुआ। वस्तुतः यह अत्यन्त श्रम साध्य कार्य है। विषय का संचयन एवं संग्रहण क फो श्रम के साथ उदार दृष्टि से किया गया है। ग्रन्थ की भाषा सरल, सरस व धाराप्रवाह है। सुधी पाठकों को इस ग्रन्थ में श्राविकाओं से सम्बन्धित अनेकानेक नूतन व अदृश्य जानकारियाँ प्राप्त होंगी, ऐसा मुझे पूर्णतः विश्वास है। महासतीजी आगे भी अपनी ज्ञान-गरिमा के साथ ज्ञान-सम्पदा को साहित्य-गगन में विकीर्ण करती रहें। इसी मंगल मनीषा के साथ।
- श्रमणी डॉ. विजयश्री "आर्या'
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