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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास १.१० मुगल-कालीन कला पर जैन श्राविकाओं का प्रभाव : ई.सन् की सोलहवीं से अठारहवीं शती का काल मुगलकालीन कला का उत्कर्षकाल है |इस काल के उपलब्ध चित्र विशेष रूप से आकर्षक हैं। निम्न चित्र दिल्ली श्वेतांबर जैन मंदिर से प्राप्त हुए हैं। इनका समय ई. सन् की अठारहवीं शती है। ये चित्र दिल्ली नौघरा मोहल्ले में स्थित श्री सुमतिनाथ भगवान् एवं चेलपुरी स्थित संभवनाथ भगवान् के प्राचीन जैन मंदिर के है। ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है कि आचार्य जिनप्रभसूरि ने संवत् १३८६ में "विविध तीर्थकल्प” की रचना यहीं पर की थी। उनकी रचना में इन मंदिरों का उल्लेख है। ये मंदिर प्राचीन होने के कारण इनमें दीवारों पर प्राचीन स्वर्ण चित्रकला से अलंकृत चित्रकारी परिलक्षित होती है। बादशाह पर्फरूखसियर के समय सेठ घासीराम शाही खजांची ने ई. सन् १७१३-१७१६ में इन मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। प्रस्तुत चित्र उसी काल की श्राविकाओं से संबंधित प्रतीत होते हैं। इसी समय के एक चित्र में तीर्थंकर भ०. महावीर के भव्य समवसरण की रचना एवं उस समवसरण में प्रभु का उपदेश श्रवण करती हुई भक्तिसंपन्न श्राविकाएं दृष्टिगत होती हैं। धर्म समवसरण में पहुंचने के लिए तत्पर श्राविकाओं का उत्साह स्पष्ट प्रतिभासित होता है। १.१० चित्र सं. (१) मुगल कालीन जैन श्राविकाओं के चित्र (सन् १७७०-७६) १८वीं शती निम्न चित्र में श्राविकाएँ राजस्थानी परिधान युक्त होकर धर्म विधि सम्पन्न कर रही हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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