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१.८ तीर्थाधिराज आबू पर जैन श्राविकाओं का प्रभाव
अर्बुद परिमंडल के तीर्थराज आबू के लूणवसही मंदिर के निर्माण में सुश्राविकारत्न अनुपमादेवी का अनुपम प्रभाव परिलक्षित होता है। चंद्रावती के ठाकुर धरणिग एवं परम धर्मरूचिसंपन्ना तिहुण देवी से संस्कारित यह पुत्री सुश्रावक तेजपाल की धर्मपत्नी थी। इस सन्नारी ने स्वयं के मार्गदर्शन में मंदिर निर्माण करवाया। किंवदन्ति है कि कारीगरों का उत्साह बढ़ाने के लिए अनुपमादेवी ने जितना पत्थर उकेरा जाता, उतनी ही स्वर्ण मुद्राएं कारीगरों को प्रदान की थी। सुश्रावक वस्तुपाल एवं उनकी दोनों पत्नियां राजल देवी और रत्नदेवी की मूर्तियाँ भी मंदिर में पाई गईं हैं। संभवतः आबू स्थित देवरानी जिठानी का गोखरा इसी परिवार की श्राविकाओं द्वारा निर्मित शिल्पाकृति है । मन्दिर में स्थित पद्मावती देवी की प्रतिमा के पार्श्व भाग में चँवर डुलाती हुई भक्तिमान श्राविकाओं के चित्र भी दृष्टव्य हैं।
१.८ चित्र सं. (१)
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ई. सन् १२वीं - १३वीं शती
सुश्रावक तेजपाल और उसकी धर्म पत्नी सुश्राविकारत्न अनुपमादेवी
पूर्व पीठिका
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