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________________ साध्वी डॉ. प्रतिभा प्रस्तुत शोध-कार्य के द्वारा इस ग्रंथ की विषय-वस्तु का समीक्षात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन किया गया है, यही इस शोध कार्य का महत्त्व है। उपलब्ध बाईस प्रकीर्णक ग्रंथों में से बारह प्रकीर्णक ग्रन्थ ऐसे हैं जो समाधिमरण विषय को संक्षिप्त या विस्तृत रूप से प्रस्तुत करते हैं। इनमें से कुछ ग्रंथों का यथासंस्तारकप्रकीर्णक, महाप्रत्याख्यानप्रकीर्णक, आतुरप्रत्याखानप्रकीर्णक आदि का गुजराती, हिन्दी व अंग्रेजी अनुवाद हो चुका है। इसके अतिरिक्त विभिन्न आगमों तथा व्याख्या-ग्रंथों में उपलब्ध समाधिमरण विषयक जानकारी भी उनकी गुजराती, हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं में निबद्ध भाषा-टीकाओं के माध्यम से जिज्ञासु पाठकों को प्राप्त हैं। दिगंबर-परम्परा के साहित्य में भी भगवती-आराधना, मूलाचार, गोम्मटसार, समाधिमरणोत्साहदीपक, सागार-धर्मामृत, वसुनंदी-श्रावकाचार एवं रत्नकण्डक श्रावकाचार आदि में समाधिमरण विषयक जानकारी विस्तार से उपलब्ध है। इनके अतिरिक्त भी समाधिमरण विषय पर कई विद्वानों द्वारा समालोचनात्मक ग्रंथ, शोध-प्रबन्ध व लेख भी लिखे जा चुके हैं जिनमें से प्रो. सागरमल जैन का 'जैन आगमों में समाधिमरण की अवधारणा', प्रो. प्रेम सुमन जैन का 'प्राचीन जैन-ग्रंथों में समाधिमरण के दृष्टांत', डॉ. रमेशचन्द्र जैन का 'सल्लेखना : एक अध्ययन', डॉ. रज्जन कुमार का 'समाधिमरण', डॉ. पुरंदर चौगुले का 'सल्लेखना का दार्शनिक अध्ययन' तथा डॉ. (कर्नल) दलपतसिंह बया का 'प्राकृत व पाली आगम-साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन' प्रमुख हैं। फिर भी ये सभी आलेख रूप में ही है। समाधिमरण सम्बन्धी डॉ. रज्जनकुमार का जैनधर्म में समाधिमरण तथा जस्टिस तुकोल का समाधिमरण नॉट सोसाइड ? ग्रन्थ हैं, किन्तु ये ग्रन्थ उसकी सामान्य विवेचना ही करते हैं, समाधिमरण से सम्बन्धित किसी ग्रन्थ का समीक्षात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत नहीं करते हैं, हमारा उद्देश्य समाधिमरण सम्बन्धी विवरण प्रस्तत करने के साथ इस ग्रन्थ की विषयवस्तु की तुलना एवं समीक्षा करना भी रहा है। यही कारण है कि प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में हमने आतुर प्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, मरणसमाधि, वीरभद्रकृत आराधना-पताका तथा दिगम्बर-परम्परा के मूलाचार, भगवती-आराधना आदि से इसकी गाथागत तुलना करके यह बताया है कि यह ग्रन्थ अपने पूर्ववर्ती ग्रन्थों से किस प्रकार प्रभावित रहा है और इसने अपने परवर्ती ग्रन्थों को किस प्रकार प्रभावित किया है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध सात अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में प्रस्तुत शोध-ग्रन्थ के कर्ता तथा उसकी विषयवस्तु की विस्तृत चर्चा की गई है। द्वितीय अध्याय में जैन-परम्परा में उपलब्ध समाधिमरण सम्बन्धी साहित्य की चर्चा करते हुए प्रस्तुत प्राचीन आचार्यकृत आराधनापताका का समाधिमरण सम्बन्धी इन ग्रन्थों से गाथागत कितना साम्य है -यह बताने का प्रयास किया गया है। इसी अध्याय में दिगम्बर परम्परा के मूलाचार, भगवती-आराधना आदि से भी इसका गाथागत साम्य और वैषम्य बताया गया है। तृतीय अध्याय में प्रस्तुत ग्रन्थ के आधार पर समाधिमरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया की चर्चा की गई है और उसकी चर्चा अन्य ग्रन्थों में, विशेष रूप से संवेगरंगशाला आदि में कहां और किस रूप से मिलती है -इसका भी तुलनात्मक दृष्टि निर्देश किया गया है। यह अध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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