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________________ भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन सत्याभीप्सा, अर्थात् सत्य को जानने की तीव्रतम आकांक्षा, क्योंकि जिसमें सत्याभीप्सा होगी, वही सत्य को पा सकेगा। सत्याभीप्सा से ही अज्ञान से ज्ञान की ओर प्रगति होती है । यही कारण है कि उत्तराध्ययनसूत्र में संवेग का प्रतिफल बताते हुए महावीर कहते हैं कि संवेग से मिथ्यात्व (अयथार्थता) की विशुद्धि होकर यथार्थ दर्शन की उपलब्धि (आराधना) होती 137 84 3. निर्वेद - निर्वेद शब्द का अर्थ है - उदासीनता, वैराग्य, अनासक्ति । सांसारिकप्रवृत्तियों के प्रति उदासीन भाव रखना, क्योंकि इसके अभाव में साधना के मार्ग पर चलना सम्भव नहीं होता । वस्तुतः, निर्वेद निष्काम भावना या अनासक्त - दृष्टि के विकास का आवश्यक अंग है। 4. अनुकम्पा - इस शब्द का शाब्दिक - निर्वचन इस प्रकार है - अनु + कम्प | अनु का अर्थ है तदनुसार, कम्प का अर्थ है - कम्पित होना, अर्थात् किसी के अनुसार कम्पित होना। दूसरे शब्दों में, दूसरे व्यक्ति के दुःख से पीड़ित होने पर तदनुकूल अनुभूति उत्पन्न होना ही अनुकम्पा है। वस्तुतः, दूसरे के सुख-दुःख समझना ही अनुकम्पा है। परोपकार के नैतिक सिद्धान्त का आधार ही अनुकम्पा है। इसे सहानुभूति भी कहा जा सकता है । 5. आस्तिक्य - आस्तिक्य शब्द आस्तिकता का द्योतक है। इसके मूल में अस्ति शब्द है, जो सत्ता का वाचक है। आस्तिक किसे कहा जाए, इस प्रश्न का उत्तर अनेक रूपों में दिया गया है। कुछ ने कहा, जो ईश्वर के अस्तित्व या सत्ता में विश्वास करता है, वह आस्तिक है, दूसरों ने कहा, जो वेदों में आस्था रखता है, वह आस्तिक है, लेकिन जैनविचारणा में आस्तिक और नास्तिक के विभेद का आधार भिन्न है। जैन दर्शन के अनुसार, जो पुण्य-पाप, पुनर्जन्म, कर्म - सिद्धान्त और आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है, वह आस्तिक है । - सम्यक्त्व के दूषण (अतिचार ) - जैन- विचारकों की दृष्टि में यथार्थता या सम्यक्त्व के पाँच दूषण (अतिचार) माने गए हैं, जो सत्य या यथार्थता को अपने विशुद्ध स्वरूप से जानने अथवा अनुभूत करने में बाधक हैं। अतिचार वह दोष है, जिससे व्रत-भंग तो नहीं होता, लेकिन उसकी सम्यक्ता प्रभावित होती है। सम्यक् दृष्टिकोण की यथार्थता प्रभावित करने वाले तीन हैं- 1. चल, 2. मल और 3. अगाढ़ । चल-दोष से तात्पर्य यह है कि व्यक्ति अन्तःकरण से तो यथार्थ दृष्टिकोण के प्रति दृढ़ रहता है, लेकिन कभीकभी क्षणिक रूप में बाह्य - आवेगों से प्रभावित हो जाता है । मल वे दोष हैं, जो यथार्थ दृष्टिकोण की निर्मलता को प्रभावित करते हैं। मल पाँच हैं 1. शंका - वीतराग या अर्हत् के कथनों पर शंका करना, उसकी यथार्थता के प्रति संदेहात्मक दृष्टिकोण रखना । 2. आकांक्षा - स्वधर्म को छोड़कर पर-धर्म की इच्छा करना या आकांक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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