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________________ ०१. भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन करने के पश्चात् जब साधक पुनः मिथ्यात्व की ओर लौटता है, तो लौटने की इस क्षणिक अवधि में वान्त सम्यक्त्व का किंचित् संस्कार अवशिष्ट रहता है, जैसे वमन करते समय वमित पदार्थों का कुछ स्वाद आता है, वैसे ही सम्यक्त्व को वान्त करने समय सम्यक्त्व का भी कुछ आस्वाद रहता है। जीव की ऐसी स्थिति सास्वादन सम्यक्त्व-कहलाती है। ___ साथही, जब जीव क्षायोपशमिक-सम्यक्त्वकी भूमिका से क्षायिक-सम्यक्त्वकी प्रशस्त भूमिका पर आगे बढ़ता है और इस विकास-क्रम में जब वह सम्यक्त्वमोहनीयकर्म-प्रकृति के कर्म-दलिकों का अनुभव कर रहा होता है, तो सम्यक्त्व की यह अवस्था 'वेदक-सम्यक्त्व' कहलाती है। वेदक-सम्यक्त्वके अनन्तर जीव क्षायिक-सम्यक्त्वको प्राप्त कर लेता है। वस्तुतः, सास्वादन और वेदक-सम्यक्त्वसम्यक्त्व की मध्यान्तर-अवस्थाएँ हैंपहली सम्यक्त्व से मिथ्यात्व की ओर गिरते समय और दूसरी, क्षायोपशिमक-सम्यक्त्व से क्षायिक-सम्यक्त्व की ओर बढ़ते समय होती है। सम्यक्त्वका द्विविध वर्गीकरण-सम्यक्त्व का विश्लेषण अनेक अपेक्षाओं से किया गया है, ताकि उसके विविध पहलुओं पर समुचित प्रकाश डाला जा सके। सम्यक्त्व का द्विविध वर्गीकरण चार प्रकार से किया गया है। (अ) द्रव्य-सम्यक्त्व और भाव-सम्यक्त्वा (1) द्रव्य-सम्यक्त्व- विशुद्ध रूप में परिणत किए हुए मिथ्यात्व के कर्म परमाणु द्रव्य-सम्यक्त्व हैं। (2) भाव-सम्यक्त्व- उपर्युक्त विशुद्ध पुगल-वर्गणा के निमित्त से होने वाली तत्त्व-श्रद्धाभाव-सम्यक्त्व है। (ब) निश्चय-सम्यक्त्व और व्यवहार-सम्यक्त्व28 (1) निश्चय-सम्यक्त्व-राग, द्वेष और मोह का अत्यल्प हो जाना, पर-पदार्थों से भेद-ज्ञान एवं स्वस्वरूप में रमण, देह में रहते हुए देहाध्यास का छूट जाना, निश्चयसम्यक्त्वके लक्षण हैं। मेराशुद्ध स्वरूप अनन्तज्ञान, अनन्त दर्शन और अनन्त आनन्दमय है। पर-भाव याआसक्ति ही बंधन का कारण है और स्वस्वभाव में रमण करना ही मोक्ष का हेतु है। मैं स्वयं ही अपना आदर्श हूँ, देव, गुरु और धर्म मेरा आत्मा ही है, ऐसी दृढ़श्रद्धा का होना ही निश्चय-सम्यक्त्व है। आत्म-केन्द्रित होना-यही निश्चय-सम्यक्त्व है। (2) व्यवहार-सम्यक्त्व-वीतराग में देव-बुद्धि (आदर्श बुद्धि), पाँच महाव्रतों का पालन करने वाने मुनियों में गुरु-बुद्धि और जिनप्रणीत धर्म में सिद्धान्त-बुद्धि रखना व्यवहार-सम्यक्त्व है। (स) निसर्गज-सम्यक्त्व और अधिगमज-सम्यक्त्व (1) निसर्गज-सम्यक्त्व-जिस प्रकार नदी के प्रवाह में पड़ा हुआ पत्थर बिना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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