________________
उपसंहार
भय, संघर्ष, तनाव और अप्रामाणिकता से मुक्त कर सके। इन सब के मूल में मानसिकविषमता के रूप में आसक्ति ही मूल कारण है, अतः वैयक्तिक एवं सामाजिक विषमताओं को पूर्णतया समाप्त करने के लिए जिस जीवन-दृष्टि की आवश्यकता है, वह है- अनासक्त जीवन-दृष्टि ।
अनासक्त जीवन-दृष्टि का निर्माण
जैसा कि हमने देखा, जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का अन्तिम नैतिकसिद्धान्त यदि कोई है, तो वह अनासक्त जीवन-दृष्टि का निर्माण है। जैन दर्शन में राग के प्रहाण का, बौद्ध दर्शन में तृष्णा-क्षय का और गीता में आसक्ति के नाश का जो उपदेश है, उसका लक्ष्य है- अनासक्त जीवन-दृष्टि का निर्माण। जैन आचार-दर्शन के समग्र नैतिक विधि - निषेध राग के प्रहाण के लिए हैं, बौद्ध दर्शन के सभी उपदेशों का अन्तिम हार्द हैतृष्णा का क्षय और गीता में कृष्ण के उपदेश का सार है- फलासक्ति का त्याग। इस प्रकार, तीनों आचार-दर्शनों का सार एवं उनकी अन्तिम फलश्रुति है-अनासक्त जीवन जीने की कला का विकास । यही समग्र नैतिक एवं आध्यात्मिक-जीवन का सार है और यही नैतिकपूर्णता की अवस्था है ।
सन्दर्भ ग्रन्थ
1. उत्तराध्ययन, 25 / 27, 21
2. धम्मपद 401-403
3. उत्तराध्ययन 12 /44
4. अंगुत्तरनिकाय - सुत्तनिपात-उद्धृत भगवान् बुद्ध, पृ 26
5. देखिए भगवान् बुद्ध, 236-239
6. गीता 4/33,
26-28
-
7. उत्तराध्ययन 12/46
8. उत्तराध्ययन 9/40, देखिए - गीता (शा.) 4/26-27
9. धम्मपद 106
10. नैतिकता का गुरुत्वाकर्षण, पृ. 3-4
11. देखिए - नैतिकता का गुरुत्वाकर्षण, पृ. 1
12. जैन प्रकाश, 8 अप्रैल, 1969, पृ. 11 13. नए संकेत, पृ. 57
14. नैतिकता का गुरुत्वाकर्षण, पृ. 25
15. दी कान्सेप्ट ऑफ मारल्स, पृ. 143 16. नैतिकता का गुरुत्वाकर्षण, पृ. 6,13-14
Jain Education International
549
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org