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________________ भारतीय आचार- दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन का पूर्णतया अभाव होता है। इस अवस्था में आत्मा स्वस्वरूप में ही रमण करती है और अन्त निर्वाण या मोक्ष प्राप्त कर लेती है, इस प्रकार यह नैतिक-स 5- साध्य की उपलब्धि की अवस्था है, आत्मा के पूर्ण समत्व की अवस्था है, जोकि समग्र आचार - दर्शन का सार है। परादृष्टि में होने वाले तत्त्वबोध की तुलना चन्द्रप्रभा से की जाती है। जिस प्रकार चन्द्रप्रभा शांत और आल्हादजनक होती है, उसी प्रकार इस अवस्था में होने वाला तत्त्वबोध भी शांत एवं आनन्दमय होता है। 57 532 योगबिन्दु में आध्यात्मिक - विकास आचार्य हरिभद्र ने योगबिन्दु में आध्यात्मिक विकास-क्रम की भूमिकाओं को निम्न पाँच भागों में विभक्त किया है - 1. अध्यात्म, 2. भावना, 3. ध्यान, 4. समता और 5. वृत्तिसंक्षय । आचार्य ने स्वयं ही इन भूमिकाओं की तुलना योग- परम्परा की सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात नामक भूमिकाओं से की है। प्रथम चार भूमिकाएँ सम्प्रज्ञात हैं और अन्तिम असम्प्रज्ञात | S8 इन पाँच भूमिकाओं में समता चित्तवृत्ति की समत्व की अवस्था है और वृत्तिसंक्षय आत्मरमण की । समत्व हमारी आध्यात्मिक-साधना का प्रथम चरण है और वृत्तिसंक्षय आध्यात्मिक-साध्य की उपलब्धि । 58 सन्दर्भ ग्रन्थ 1. नियमसार, 77 2. स्पीनोजा इन दि लाइट ऑफ वेदान्त, पृ. 38 टिप्पणी, 199, 204 - 3. (अ) अध्यात्ममत परीक्षा, गा. 125 (ब) योगावतार, द्वात्रिंशिका, 17-18 (स) मोक्खपाहुड, 4 4. देखिए - आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्ध, अध्याय 3-5 5. मोक्खपाहुड, 4 6. मोक्खपाहुड, 5, 8, 10, 11 7. वही, 5, 9 8. वही, 5, 6, 12 9. विशेष विवेचन एवं सन्दर्भ के लिए देखिए (अ) दर्शन और चिन्तन, पृ. 276 277, (ब) जैन धर्म, पृ. 147 10. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा 1211-1214 11. भर्तृहरि - उद्धृत पाश्चात्य आचारविज्ञान का आलोचनात्मक अध्ययन, पृ. 40 Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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