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________________ 526 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन 2. सास्वादन-गुणस्थान की अवस्था में भी तमोगुण प्रधान होता है। रजोगुण तमोन्मुखी होता है, फिर भी किंचित् रूप में सत्वगुण का प्रकाश रहता है। यह सत्वरज समन्वित तमोगुण-प्रधान अवस्था है। 3. मिश्र-गुणस्थान में रजोगुण प्रधान होता है। सत्व और तम-दोनों ही रजोगुण के अधीन होते हैं। यह सत्व-तम समन्वित रजोगुण-प्रधान अवस्था है। 4. सम्यक्त्व-गुणस्थान में व्यक्ति के विचार-पक्ष में सत्वगुण का प्राधान्य होता है । विचार की दृष्टि से तमस् और रजस्-गुण सत्वगुण से शासित होते हैं, लेकिन आचार की दृष्टि से सत्वगुण तमस् और रजस् गुणों से शासित होता है। यह विचार की दृष्टि से रजसमन्वित सत्वगुण-प्रधान और आचार की दृष्टि से रजसमन्वित तमोगुणप्रधान अवस्था है। 5. देशविरतसम्यक्त्व-गुणस्थान में विचार की दृष्टि से तो सत्वगुण प्रधान होता है, साथ ही आचार की दृष्टि से भी सत्व का विकास प्रारम्भ हो जाता है, यद्यपि रज और तम पर उसका प्राधान्य स्थापित नहीं हो पाता है। यह तमोगुण समन्वित सत्वोन्मुखी रजोगुण की अवस्था है। 6. प्रमत्तसंयत-गुणस्थान में यद्यपिआचार-पक्ष और विचार-पक्ष, दोनों में सत्वगुण 'प्रधान होता है, फिर भी तम और रज उसकी इस प्रधानता को स्वीकार नहीं करते हुए अपनी शक्ति बढ़ाने की और आचार-पक्ष की दृष्टि से सत्व पर अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश करते रहते हैं। 7. अप्रमत्तसंयत-गुणस्थान में सत्वगुण तमोगुण का या तो पूर्णतया उन्मूलन कर देता है, अथवा उस पर पूरा अधिकार जमा लेता है, लेकिन अभी रजोगुण पर उसका पूरा अधिकार नहीं हो पाता है। 8. अपूर्वकरण नामक गुणस्थान में सत्वगुण रजोगुण पर पूरी तरह काबू पाने का प्रयास करता है। ___9. अनावृत्तिकरण नामक नौवें गुणस्थान में सत्वगुण रजोगुण को काफी अशक्त बनाकर उस पर बहुत कुछ काबू पा लेता है, फिर भी रजोगुण अभी पूर्णतया निःशेष नहीं होता है। रजोगुण की कषाय एवं तृष्णारूपी आसक्तियों का बहुत-कुछ भाग नष्ट हो जाता है, फिर भी रागात्मक आसक्तियाँ सूक्ष्म लोभ के छद्मवेश में अवशेष रहती हैं। ____ 10. सूक्ष्मसम्पराय नामक गुणस्थान में साधक छद्मवेशी रजस् को, जो सत्व का छद्म स्वरूप धारण किए हुए था, पकड़कर उस पर अपना आधिपत्य स्थापित करता है। 11. उपशान्तमोह नामक गुणस्थान में सत्व का तमस्-रजस् पर पूर्ण अधिकार तो होता है, लेकिन यदि सत्व पूर्व अवस्थाओं में उनका पूर्णतया उन्मूलन नहीं करके मात्र उनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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