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________________ 472 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन इसके पोषण एवं रक्षण के प्रयासों का परित्याग करता हूँ।192 बौद्ध-परम्परा में मृत्यु-वरण यद्यपि बुद्ध ने जैन-परम्परा के समान ही धार्मिक-आत्महत्याओं को अनुचित माना है, तथापि बौद्ध-वाङ्मय में कुछ ऐसे सन्दर्भ अवश्य हैं, जो स्वेच्छापूर्वक मृत्यु-वरण का समर्थन करते हैं । संयुत्तनिकाय में असाध्य रोग से पीड़ित भिक्षु वक्कलि कुलपुत्र 199 तथा भिक्षु छन्न 194 द्वारा की गई आत्महत्याका समर्थन बुद्ध ने किया था और उन्हें निर्दोष कहकर दोनों ही भिक्षुओं को परिनिर्वाण प्राप्त करनेवाला बताया था। जापानी-बौद्धों में तो आज भी 'हरीकरी' की प्रथा मृत्यु-वरण की सूचक है। फिर भी, जैन और बौद्ध-परम्पराओं में मृत्युवरण के प्रश्न को लेकर कुछ अन्तर भी हैं। प्रथम तो यह कि जैन-परम्परा के विपरीत बौद्ध-परम्परा में शस्त्रवध से तत्काल ही मृत्यु-वरण कर लिया जाता है। जैन-आचार्यों ने शस्त्रवध आदि के द्वारा तात्कालिक मृत्युवरण का विरोध इसलिए किया था कि उन्हें उसमें मरणाकांक्षा की सम्भावना प्रतीत हुई। यदि मरणाकांक्षा नहीं है, तो फिर मरण के लिए इतनी आतुरता क्यों ? इस प्रकार, जहाँ बौद्ध-परम्परा शस्त्र के द्वारा की गई आत्महत्या का समर्थन करती है, वहाँ जैन-परम्परा उसे अस्वीकार करती है। इस सन्दर्भ में बौद्ध-परम्परा वैदिक- परम्परा के अधिक निकट वैदिक-परम्परा में मृत्यु-वरण सामान्यतया, हिन्दू धर्म-शास्त्रों में आत्महत्या को महापाप माना गया है। पाराशर-स्मृति में कहा गया है कि जो क्लेश, भय, घमण्ड और क्रोध के वशीभूत होकर आत्महत्या करता है, वह आठ हजार वर्ष तक नरकवास करता है। 195 महाभारत के आदिपर्व के अनुसार भी आत्महत्या करनेवाला कल्याणप्रद लोकों में नहीं जा सकता है, 196 लेकिन इनके अतिरिक्त हिन्दूधर्म-शास्त्रों में ऐसे भी अनेक उल्लेख हैं, जो स्वेच्छापूर्वक मृत्युवरण का समर्थन करते हैं। प्रायश्चित्त के निमित्त से मृत्युवरण का समर्थन मनुस्मृति (11/90-91), याज्ञवल्क्यस्मृति (3/253), गौतमस्मृति (23/1), वसिष्ठ धर्मसूत्र (20/22, 13/14) और आपस्तम्बसूत्र (1/9/25/1-3, 6) में भी है। इतना ही नहीं, हिन्दू धर्म-शास्त्रों में ऐसे भी अनेक स्थल हैं, जहाँ मृत्युवरण को पवित्र एवं धार्मिकआचरण के रूप में देखा गया है। महाभारत के अनुशासनपर्व (25/62-64), वनपर्व (85/83) एवं मत्स्यपुराण (186/34/35) में अग्निप्रवेश, जलप्रवेश, गिरिपतन, विषप्रयोग या उपवास आदि के द्वारा देह त्याग करने पर ब्रह्मलोक या मुक्ति प्राप्त होती है, ऐसा माना गया है। अपरार्क ने प्राचीन आचार्यों के मत को उद्धृत करते हुए लिखा है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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