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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
छल-कपट से आहार लेना, (10) लोभ-सरस भिक्षा के लिए अधिक घूमना, (11) पूर्वपश्चात्संस्तव - दानदाता के माता-पिता अथवा सास-ससुर आदि से अपना परिचय बताकर भिक्षा लेना, (12) विद्या-जप आदि से सिद्ध होने वाली विद्या का प्रयोग करना, (13) मंत्र-मंत्र-प्रयोग से आहार लेना, (14) चूर्ण-चूर्ण आदि वशीकरण का प्रयोग करके आहार लेना, (15) योग-सिद्धि आदियोगविद्या का प्रदर्शन करना, (16) मूलकर्मगर्भस्तंभन आदि के प्रयोग बताना।
(इ) ग्रहणैषणा के 10 दोष-1.शंकित-आधाकर्मादि दोषों की शंका होने पर भी लेना, 2. मेक्षित-सचित्त का संघट्ट होने पर आहार लेना, 3. निक्षिप्त-सचित्त पर रखा हुआआहार लेना, 4. पिहित-सचित्त से ढका हुआ आहार लेना, 5. संहृत-पात्र में पहले से रखे हुए अकल्पनीय पदार्थ को निकालकर उसी पात्र से लेना, 6. दायक-शराबी, गर्भिणी आदि अनाधिकारी से लेना, 7. उन्मिश्र-सचित्त से मिश्रित आहार लेना, 8. अपरिणत - पूरे तौर पर बिना पके शाकादि लेना, 9. लिप्त-दही, घृत आदिसे लिप्त पात्र या हाथसे आहार लेना, पहले और पीछे हाथ धोने के कारण क्रमशः पूर्वकर्म तथा पश्चात्कर्मदोष होता है। 10. छति-छोटे नीचे पड़ रहे हों, ऐसा आहार लेना।
(ई) ग्रासैषणा के 5 दोष- 1.संयोजन-सलोलुपता के कारण दूध और शकर आदि द्रव्यों को परस्पर मिलाना, 2. अप्रमाण-प्रमाण से अधिक भोजन करना, 3. अंगार-सुस्वादुभोजन की प्रशंसा करते हुए खाना। यह दोष चारित्र को जलाकर कोयले की तरह निस्तेज बना देता है, अतः अंगार कहलाता है। 4. धूम-नीरस आहार की निन्दा करते हुए खाना, 5. अकारण-आहार करने के छ: कारणों के सिवाय बलवृद्धि आदि के लिए आहार करना।177
दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थ अनगार-धर्मामृत में इन सैंतालीस दोषों में से छियालीस पिण्ड-दोषों का विवेचन किया गया है, जो निम्नानुसार हैं - 16 उद्गम-दोष, 16 उत्पादनदोष, 10. शंकितादि दोष और 4 अंगारादि दोष।
मुनि को अपने भोजन में स्वाद-लोलुपता न रखकर मात्र संयमपालन के लिए आहार आदिग्रहण करना चाहिए। भोजन के संबंध में मुनि काआदर्श यह होना चाहिए कि जीने के लिए खाना है न कि खाने के लिए जीना है।
वस्त्र-मर्यादा- दिगम्बर - परम्परा के अनुसार, मुनि को वस्त्ररहित अर्थात् अचेल रहना चाहिए। उसमें मुनि के लिए वस्त्रों का उपयोग सर्वथा निषिद्ध है, यद्यपि श्रमणी के लिए वस्त्र का विधान है। श्वेताम्बर-परम्परा में भी वस्त्ररहित जिनकल्पीमुनियों का वर्णन है, लेकिन इसके अतिरिक्त श्वेताम्बर-परम्परा के आचारांगसूत्र में मुनियों
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